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ममेयन्द्रिका टी० ० ५ १०८. १ जीवदिविहान्यादिनिरूपणम् ६३१
छाया-भदन्त ! इति भगवान गौतमः श्रमणं यावत्- एवम् अवादीत-जीवाः खलु भदन्त ! किं वर्धन्ते, हीयते, अवस्थिताः ? गौतम ! जीवा नो वर्धन्ते, मो हीयन्ते, अवस्थिताः । नैयिकाः ख्लु भदन्त ! किं वर्धन्ते, हीयन्ते, अबस्थिताः ? गौतम ! नैरयिकाः वर्धन्तेऽपि, हीयतेऽपि, अवस्थिता अपि यथा नैरयिकाः । एवं यावत्-वैमानिकाः सिद्धाः खलु भदन्त ! पृच्छा ? गौतम ! सिद्धा
जीवों की वृद्धि हास आदि की वक्तव्यता (भंते ! त्ति भगवं गोयमे) इत्यादि । सूत्रार्थ-(भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं जाव एवं वयासी) हे भदन्त ! ऐसा कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार से पूछा (जीवा णं भते ! किं वइंति, हायंति, अवट्टिया ) हे भदन्त ! जीव क्या बढते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? ( गोयमा ! जीवा णो वइंति, णो हायंति, अवडिया ) हे गौतम ! जीव न बढ़ते हैं
और न घटते हैं-किन्तु वे अवस्थित रहते हैं । ( नेरइयाणं भंते ! किं बड्डुति हायंति अवट्ठिया ? ) हे भदन्त ! नारक क्या बढते है ? घटते हैं ? या अवस्थित रहते हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम ! ( नेरइया वइंति वि, हायति वि, अवटिया वि ) हे गौतम ! नारक बढते भी हैं, घटने भी हैं
और अवस्थित भी रहते हैं। (जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया) जैसा यह कथन नारकों के विषय में कहा गया है
वानी वृद्धि, डास माहिन नि३५४" भते ! त्ति भगव' गोयमे" त्याहि
सूत्रा--" भते ति भगव गोयमे समण जाव एवं वयासी” “ ભદન્ત ” એવું સંબોધન કરીને ગૌતમ સ્વામીએ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને ॥ प्रमाणे पूछ्यु-(जीवाण भते ! किं वढंति, हायति अवदिया ? ) ભદન્ત! જીમાં શું વધારે થાય છે, ઘટાડો થાય છે, અથવા તો તેમની संध्या मेटलीने थेटसी ०४ २७ छ ? ( गोयमा ! जीवा णो वड्ढति, णो हाय ति अवद्विया ) 3 गौतम ! « qयता नथी, घटतां ५५५ नथी, पण तेथे। अपस्थित २७ छे. (नेर इयाण भंते ! किं वड्ढ ति, हायति, अवट्रिया ?) महन्त ! शुं ना२। 4 छ ? घटे छ ? , मस्थित २३ छ ? ( गोयमा!)
गौतम! ( नेरइया वड्ढति वि, हायति वि अवटिया वि) ना२। वृद्धि પણ પામે છે, ઘટે પણ છે અને અવસ્થિત પણ રહે છે. એટલે કે વૃદ્ધિ વગર २२ छ. (जहा नेरइया एव जाव वेमाणिया) वृद्धि भने निना विषयमा
श्री.भगवती.सत्र:४