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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी००५४०७८०७ नैरविकानां सार' भानार भादिनिरूपणम् ५५९ सारम्भाः, सपरिग्रहाश्च भवन्ति, नो अनारम्भाः नो अपरिग्रहा भवन्ति, यावत्करणात् - नागकुमारादीनाम् अष्टानां ग्रहणं भवतीत्याशयः । 'एगिंदिया जहा रइया' एकेन्द्रियाः जीवाः तथा ज्ञातव्याः, यथा नैरयिका उक्ताः, तथा च नैरयिकवत् एकेन्द्रिया अपि जीवाः सारम्भाः सपरिग्रहा भवन्ति, नो अनारम्भाः, नो वा अपरिग्रहाः । तत्र एकेन्द्रियाणाम् आरम्भादेः अप्रत्याख्यातखात् परिग्रहो वेदितव्यः | 'बेइंदिया णं भंते! किं सारंभा, सपरिग्गहा?" गौतमः पृच्छति - हे भदन्त । द्वीन्द्रियाः खलु जीवाः किं सारम्भाः सपरिग्रहाः भवन्ति ? उताहो अनारम्भाः, अपरिग्रहाः भवन्ति ? भगवानाह - 'तं चेत्र जाव- सरीरा परिगरिया भवति' हे गौतम! तदेवपूर्ववदेव, नैरयिकय देवेत्यर्थः द्वीन्द्रियैः जीवैः यावत् - शरीराणि परिगृहीतानि भवन्ति, यावत्करणात् - द्वीन्द्रियाः सारम्भाः, सपरि आरंभ परिग्रह से रहित नहीं। यहां यावत् पद से नागकुमार आदि आठ भवनपतियों का ग्रहण हुआ है। (एगिंदिया जहा णेरड्या ) नাरक जीवों की तरह ही एकेन्द्रिय जीवों को भी आरंभ और परिग्रह सहित ही जानना चाहिये। क्यो की ये आरंभ और परिग्रह से रहित न हीं होते है । (बेइंदियाणं भंते । किं सारंभा सपरिग्गहा ) हे भदन्त ! दो इन्द्रिय जीव क्या आरंभ और परिग्रह सहिन होते हैं ! कि आरंभ और परिग्रहण रहित होते हैं ! भगवान इसके उत्तर में कहते हैं कि गौतम ! (तंचेव जाव सरीरा परिग्गहिया भवंति ) इस विषय में नारक जीवों की तरह से जानना चाहिये अर्थात् जिस प्रकार नारक जीव आरंभ और परिग्रह सहित होते है- आरंभ परिग्रह रहित नहीं होते हैं उसी प्रकार से ये दो इन्द्रिय वाले जीव भी आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं, उनसे रहित नहीं होते हैं। ये भी औदारिक तैजस और का પદ્મથી નાગકુમાર આદિ આઠ ભવનપતિ દેવાને ગ્રહણ કરવામા આવેલા છે. ( एर्गिदिया जहा णेरइया ) मेन्द्रिय पृथ्वी माहि वनस्पति पर्यन्तना भवाने પણ નારકાની જેમજ આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત સમજવા, કારણ કે તેઓ अनारली भने अपरिग्रही होता नथी. ( बेइ दियाणं भंते ! कि सारंभा सपरिगाहा ? ) डे लक्ष्न्त ! शुं द्वीन्द्रिय भवे। भारल अने परिग्रहथी युक्त छे ? तेथे। भारल भने परिग्रहथी रहित होय छे ? ( तचैव जाव सरीरा परिगहिया भवति ) हे गौतम! द्वीन्द्रिय कवे। पशु नारनी प्रेम आरंभ ने परिગ્રહથી યુક્ત હાય છે. તે આરભ અને પરિગ્રહથી રહિત હાતા નથી. તેએ પણ ઔદારિક, તૈજસ અને કામણુ એ ત્રણ શરીરવાળાં હોય છે. તે પૃથ્વી श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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