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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०१ सू० २ रात्रिदिवसस्वरूपनिरूपणम् ३९ भगवानार-हता, गोयमा !' हे गौतम ! इन्त, सत्यम् ' जयाणं जंबू' यदा खलु जम्वृ० इत्यादि 'जाद-राई भवई' यावत्-रात्रिभवति । यावत्करणाजम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणाधे अष्टादशमुहृतानन्तरो दिवसो भवति, तदारुल उत्तरेऽपि अष्टादशाहूर्तानातरो दिवसो भवति, यदा च उत्तरार्धे अष्टादशहूतानन्तरो दिचसो भवति तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मदरस्य पर्वतरय पौरस्त्ये पश्चिमे च सातिरेका द्वादशमुहर्ता इति संग्राह्यम् । गौतमः पुनः पृच्छति-जाणं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा रूलु 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स' मन्दरस्य 'पव्वयस्स' पर्वतस्य 'पुरस्थिमे ण' पौरस्त्ये खलु पूर्वभागे ' अट्ठारस मुहुत्ताणतरे ' अष्टादशमहानन्तरोऽष्टादशमहतप्रमाणो 'दिवसे भवइ' लसमुहुत्ता) बारह मुहर्त की ( राई भवइ ) रात्रि होती है क्या ? । इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता गोयमा ) हां गौतम ! ऐसी ही बात है । (जया णं जंबुजाव राई भवइ) जव जंबुद्धीप नामके द्वीप में यावत् शब्द से गृहीत दक्षिणार्ध में अठारह मुहूर्त से कुछ कम दिवस होता है, उस समय उत्तर में भी अठारह मुहर्स से कुछ कम दिवस होता है और जब उत्तरार्ध में अठारह मुहूर्त से कुछ कम दिवस होता है, उस समय जंबूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत के पौ. रस्त्य पश्चिमभाग में कुछ अधिक बारह मुहूर्त की रात्रि होतो है। ___ अब इसी बात को दूसरी तरह से प्रभु से गौतम पूछते हैं-(जया णं भंते !) हे भदन्त ! जब (जंबुद्दीवे दीवे) जंबूद्वीप नामके द्वीप में (मं. दरपव्वयस्स पुरस्थिमेणं) मंदर पर्वत के पूर्वभाग में ( अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे) अगरह मुहूर्त्त से कुछ कम (दिवसे भवइ ) दिवस होता है (तया समुहत्ता राई भवइ ?” १८मदार मुश्त भने ४.२ ५नी रात्रि थाय छ ? उत्तर-"ता गोरमा !" &ी, गौतम! मन छ. "जयाण जी' जाव राई भवइ " न्यारे २ भूद्वीपमा १८ मढार मुडूत ३२i ४ यार ५ પળ ન્યન સમયને દિવસ થાય છે, ત્યારે ઉત્તરમાં પણ એટલું જ લાગે દિવસ થાય છે. અને જ્યારે ઉત્તરમાં ૧૮ અઢાર મુહૂર્તથી ૪ ચાર પળ ન્યૂન સમયને દિવસ થાય છે, ત્યારે જ બૂઢીપમાં મંદર પર્વતના પૂર્વ અને પશ્ચિમ દિમાગમાં ૨ બાર મુહુર્ત અને ૪ ચાર પળની રાત્રિ થાય છે. व गौतम स्वामी मे बात भी रीत महावीर प्रभुन ५छे है-'जयाण म1B महतल्यारे (जबदीवे दीवे) द्वीप नामना द्वीपमा (मंदर. पव्ययस्स पुरथिमेण) महर पतना पूर्व हिमामा ( अट्ठारसमुहुत्ताण तरे ५४.२ भुत थी से न्यून प्रभावामा (दिवसे भवइ) हिपस थाय छ, श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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