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________________ মনিকা এন্ধা ৭০৩ ০৪ বসুন্নতীলী জঘনালিক ৪৭ एवं स्पर्शयितव्यः यावत्-अनन्तप्रदेशिकः ? द्विप्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः परमाणुपुद्गलं स्पृशन् पृच्छा ? तृतीयनवमाभ्यां स्पृशति, द्विपदेशिको द्विपदे. शिकं स्पृशन् प्रथम-तृतीय-सप्तम-नवमैः स्पृशति, द्विपदेशिकस्त्रिप्रदेशिकं मेहि तिहि फुसइ) तथा तीन प्रदेशवाले पुद्गलस्कन्ध का जब पुद्गल परमाणु स्पर्श करता है-तो वह सातवें,आठवें और नववे विकल्पकी अपेक्षा के अनुसार उसे स्पर्श करता है। (जहो परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसाविओ एवं फुसावेयन्वो जाव अणंतपएसिओ) जिस प्रकारसे तीन प्रदेशवाले स्कन्धको स्पर्श करनेके विषयमें यह कथन किया गया है-अर्थात् परमाणुपुद्गल तीन प्रदेश वाले स्कन्ध को जैसे-सातवें, आठवें, और नववें विकल्पके अनुसार स्पर्श करता है उसी तरह से वह यावत् अ. नन्त प्रदेशों वाले स्कन्ध को भी स्पर्श करता है ऐसा जानना चाहिये (दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे परमाणुरोग्गलं फुसमाणे पुच्छा) हे भदन्त! परमाणु पुद्गल को द्विप्रदेशी स्कन्ध किस रीति से स्पर्श करता है ( गोयमा) हे गौतम ! (तस्स नवमेहिं फुसइ) तृतीय और नवम विकल्पों के अनुसार द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणुपुद्गल को स्पर्श करता है । ( दुप्पएसिओ दुप्पएसियं फुसमाणे पढ़मतइयसत्तणवमेहि फुलइ दुप्पए. सिमो तिप्पएसियं फुसमाणो आइल्लएहिं य पच्छिल्लएहि य तिहिं फुसइ) द्विप्रदेशी स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध को प्रथम, तृतीय, ससम, नवम विकल्प से स्पर्श करता है द्विप्रदेशी स्कन्ध जय तीन प्रदेश वाले पुदल સ્કને સ્પર્શ કરતું પરમાણુ પુલ, છેલ્લાં ત્રણ એટલે કે સાતમા, આઠમાં मन नपमा विपनी अपेक्षा अनुसार तेनो २५ ४२ छे. ( जहा परमाणु पाग्गले तिप्पएसियं फुसाविओ एवं फुसावेयधो जाव अण'तपएपिओ ) ५२भार અઢલ જે રીતે ત્રિપ્રદેશી પુલ સ્કન્ધનો સ્પર્શ કરે છે એજ રીતે અનંત પર્યન્તના પ્રદેશોવાળા પુદ્ગલ સ્કન્ધાને સ્પર્શ કરે છે–એટલે કે તે તેમનો સ્પર્શ પણ સાત, આઠ અને નવમાં વિકપ અનુસાર કરે છે એમ સમજવું. ( दुप्पएसिए ण भंते ! खंधे परमाणु रोगलं फुसमाणे पुच्छा ) 3 मह.1 ! वि. हेशी २५ ५२भार सनी वी शते २५ रे छ? "गोयमार गौतम! ( तइयनवमेहिं फुसइ) विशी २४न्ध alon सने नवम विsey मनुसार ५२मा सन २५ ४२ छ. (दुप्पएसिओ दुप्पएसिय फसनाणे पढमतइयसत्तणवमेहि फुसइ) से विदेशी २४५ भी विदेशी धना સ્પર્શ કરે તે પહેલા, ત્રીજા, સાતમાં અને નવમાં વિકલ્પ અનુસાર સ્પર્શ श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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