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भगवतीस्त्रे देशः एकभागः एजते स्यात् कदाचित् देश एकभागो नो एजते, ३ 'सिय देसेएयइ-णो देसा एयंति' स्यात् कदाचित् देशः एकभागः एजते, नो देशाः त्रिभागा एजन्ते, ४ 'सिय देसा एयंति-नो देसे एयइ ' स्यात् कदाचित् देशा त्रिभागरूपा एजन्ते, नो देशः एकभागः एजते, ५ 'सिय देसा एयंति-णो देसा एयंति' स्यात् कदाचित् देशौ द्विभागरूपौ एजेते, नो देशौ अपरद्विभागरूपौ एजेते, ६ 'जहाचउप्पएसिओ तहा पंचपएसिओ, तहा जाव - अणंतपएसिओ' यथा चतुष्पदेशिकस्कन्धविषयक आलापकस्तथा पञ्चप्रदेशिकस्कन्धविषयकोऽपि आलापको विज्ञेयः, तथा यावत् – अनन्तप्रदेशिकस्कन्धविषयकोऽपि आलापकः स्कन्ध का एक भाग कंपित होता है, और एक भाग कंपित नहीं होता है। (सिय देसे एयइ णो देसा एयंति ) कभी उसका एकभाग ही कंपित होता है और उसके अनेक भाग अर्थात् तीन भाग कंपित नहीं होते हैं। (सिय देसा एयंति नो देसे एयइ ) कभी उसके तीनभागरूप देश कंपित होते हैं और एक भागरूप देश कंपित नहीं होता है । (सिय देसा एयंति, णो देसा एयंति) कभी उसके पहिले दो भाग कंपित होते हैं और दूसरे दो भाग कंपित नहीं होते हैं । ( जहा चउप्पए सिओ तहा पंच पएसिओ तहा जाव अणंतपएसिओ) जिस प्रकार से चार प्रदेशों वाले पौगलिक स्कन्ध के विषय में यह पूर्वोक्तरूप से अर्थात आलापक रूप से कथन स्पष्टीकरण किया गया है उसी प्रकार से पांच प्रदेशों वाले पुद्गल स्कन्ध के विषय में भी आलापक जानना चाहिये । और इसी तरह से अपने आप ही यावत् अनन्तप्रदेशोंवाले पुद्गल स्कन्ध के विषय में भी आलापक जान लेना चाहिये। यहां यावत् તે કથનો એક ભાગ કંપિત થાય છે અને એક ભાગ કંપિત થતો નથી. (सिय देसे एयइ णो देसा एयति ) ध्या२४ तेने। २४ मा पित थाय
मन तना मने माय मेटमा पित थता नथी. (सिय देसा एयति नो देसे एयति) या२४ तन। ३ मा ३५ देश चित थाय छ भने मे माग३५ देश पित थत। नथी. (सिय देसा एयति णो देसो एयति ) કયારેક તેના પહેલા બે ભાગ કંપિત થાય છે અને બાકીના બે ભાગ કંપિત यता नथी. (जहा चउप्पएसिओ तहा पचपएसि ओ तहा जाव अणतपएसिओ) જે પ્રમાણે ચાર પ્રદેશવાળા પુદ્ગલ સ્કન્ધ વિષે ઉપર કહ્યા મુજબનું સ્પષ્ટીકરણ કરવામાં આવ્યું છે–એટલે કે તેના વિષે જેવા આલાપક આપવામાં આવેલા છે એવા જ આલાપ પાંચ પ્રદેશવાળા પુદ્ગલ સકળે વિષે સમજી લેવા.
श्री. भगवती सूत्र:४