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प्रमेन्द्रका टीका श० ९०६०२ गृहपतिमाण्ड (ग्नि कायस्वरूप निरूपणम् ३७३
शुभदीर्घायुकता कर्म कुर्वन्ति बध्नन्ति इदमत्र बोध्यम् - उपर्युक्तमुत्रे चत्वारि अवान्तरसूत्राणि, तत्र प्रथमसूत्रमल्यायुर्विषयकं द्वितीयं दीर्घायुर्विषयकम्, तृतीयमशुभदीर्घायुविषयकम्, चतुर्थ तु शुभदीर्घायुर्विषयकमिति ॥ सू० १ ॥
गृहपतिभाण्डाग्निकायवक्तव्यताप्रस्तावः
मूलम् - " गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स hs भंडे अवहरेजा, तस्स णं भंते ! तं भंडं गवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ ? परिग्गहिया, मायावतिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छांदसणवत्तिया ? गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादंसण किरिया सिय कज्जइ सिय नो कज्जइ, अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ, तओ से य पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुई भवंति । गाहावइस्स गं भंते! भंड विक्किणमाणस्स, कइए भंडे साइज्जेज्जा ? भंडेयसे अणुवणीए सिया । गाहावइस्सणं भंते! ताओ भंडाओ
अनुराग होने पर ही वंदना और नमस्कार क्रिया होगी, पर्युपासना भी इसी कारण को लेकर की जावेगी । अतः इस प्रकार की क्रियाओं के करने से जीव को शुभ कर्मों का बंध होता है और अशुभ कर्मों का निरोध होता है। इसी कारण वह दीर्घ शुभायु का बंध करता है। यहां ऐसा समझना चाहिये कि उपर्युक्त सूत्र में चार अवान्तर सूत्र हैंइनमें प्रथम सूत्र अल्पायुविषयक है, द्वितीय दीर्घायु विषयक है, तृतीय अशुभ दीर्घायुविषयक और चतुर्थ शुभ दीर्घायुविषयक है ।। सू१।
તા જ તેમને વંદણા, નમસ્કાર આદિ કરવામાં આવે છે આ પ્રકારની ક્રિયાઓ કરવાથી જીવ શુભ કર્મોના બંધ કરે છે અને તેના અશુભ કર્મના નિરાધ થાય છે. તે કારણે તે શુભ દીર્ઘાયુના બધ કરે છે. આ સૂત્રમાં ચાર સૂત્રોના सभावेश थये े। छे. (१) मुस्यायु विषय सूत्र (२) हीर्घायु विषय सूत्र (3) अशुल हीर्घायु विषय सूत्र मने (४) शुल हीर्घायु विषय सूत्र ॥ सू० १॥
श्री भगवती सूत्र : ४