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________________ ANUARime प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५३०६सू०३ कुलकरतीर्थकराविधक्तव्यतानिरूपणम् ३५१ पितरः, प्रथमाः शिष्याः, चक्रवर्तिमातरः, स्त्रीरत्नम् , बलदेवाः, वासुदेवाः, वासु. देवमातरः, पितरः, एतेषां प्रतिशत्रवः, यथा समवाये नामपरिपाटीतथा ज्ञातव्या, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावत्-विहरति ।। मू० ३ ।। ____टीका-पूर्वसूत्रे 'संसार मंडलं नेयव्वं ' इत्युक्तम् । संसार मण्डले तु कुलकर तीर्थकरादयोऽपि भवन्त्यतस्तद्वक्तव्यतामाह-'जंबु दीवेणं भंते ' इत्यादि । 'जंबु इस अवसर्पिणीकाल में कितने कुलकर हुए हैं ? ( गोयमा!) हे गौतम (सत्त, एवं चेव तित्थयर मायरो, पियरो) सात कुलकर हुए हैं। इसी तरह से तीर्थकर की माताएँ उनके पिता (पढमा सिस्सिणीओ, चक्कवट्टिमायरो, इत्थिरयणं, बलदेवा, वासुदेवा, वासुदेवमायरो, पियरो, एएसिं पडिसत्तू जहा समवाए नामपरिवाडिए तहा णेयवा) उनकी प्रथम शिष्याएँ, चक्रवर्ती की माताएं, उनके सामने स्त्रीरत्न बलदेव, घासुदेव, वासुदेव की माताएँ उनके पिता उनके प्रतिशत्रु अर्थात् प्रतिवासुदेव जिस प्रकार से समवायांगसूत्र में नाम की परिपाटी में प्रतिपादित किये गये हैं, उसी तरह से यहां भी जानना चाहिये । (सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति जाव विहरइ ) हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है घह सब ऐसा ही हैं, हे भदन्त ! वह सब ऐसा ही है ऐसा कह कर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये। टीकार्य-पूर्वसूत्र में "संसारमंडलं नेयवं" ऐसा कहा गया है सो संसार मंडल में तो कुलकर, तीर्थकर आदि भी आ जाते हैं-अतः सपिएम सा मुख४२ च्या छ ? ( गोयमा ! ) गौतम ! ( सत्त, एवं चेष तित्थयरमायरो, पियरो) सात स४२ थया छ. से प्रमाणे ती ४२नी भातास, तमना पिता, ( पढमा सिस्सिणीओ, चक्कवट्टिमायरो, इत्थिरयणं, बलदेवा, वासुदेवा वासुदेव मायरो, पियरो, एए सि पडिसत्तू जहा समवाए नाम परिवाडीए तहा णेयव्या) तभनी प्रथम शिष्यासी, पति नी भ.तासी, तमना भीरत्न, બળવ, વાસુદેવ, વાસુદેવોની માતાઓ અને તેમના પ્રતિશત્રુરૂપ પ્રતિવાસુદેવો, આ બધાનું સમવાયાંગ સૂત્રમાં નામના પ્રકરણમાં જે રીતે વર્ણન કર્યું છે, એ જ પ્રમાણે અહીં સમજી લેવું. (सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति जाव विहरइ) महन्त ! मापनी पात બિલકુલ સત્ય છે. આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ છે. આ પ્રમાણે કહીને, મહાવીર પ્રભુને વંદણુ નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી પિતાને સ્થાને જઈને બેસી ગયા. 1-सूत्रमा ( संसारमंडल नेयव्व) मे छ ससार य/ श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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