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________________ ૧૭ प्रमेrचन्द्रिका टीका श०५४०४ सू०१४ केवलीज्ञानस्वरूपनिरूपणम् आदानैः आदीयतेो गृहयते एभिः इति आदानानि इन्द्रियाणि तैः जानाति, पश्यति किम् ? भगवानाह - ' गोयमा ! जो इणट्ठे समट्ठे ' हे गौतम । नायमर्थः समर्थः । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति' से केणद्वेगं केवली णं आयाणेहिं न जाण, न पासइ ? ' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन केवली खलु आदानैः इन्द्रियैः न जानाति न पश्यति ? भगवानाह - ' गोयमा । केवलीणं पुरत्थिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ, जाव- निव्बुडे दंसणे केवलिस्स से तेणद्वेणं' हे गौतम! केवल खलु पौरस्त्येन पूर्वस्मिन् दिग्भागे मितं परिमितं परिच्छिन्नमपि जानाति, अमितम् अपरिच्छिन्नमपि जानाति यावत्-निर्ऋतं = निष्पन्नं निरावरणं दर्शनं हैं - इसमें गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि ( केवली णं भंते! आयाणेहिं ) हे भदन्त ! केवली भगवान् विषय जिनसे ग्रहण किया जाता है ऐसे आदानों - इन्द्रियों द्वारा ( जाणइ पासइ) जानते देखते हैं क्या ? इस प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभु गौतम से कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम ( णो इणट्ठे समट्ठे ) यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( से केणट्टेर्ण ) इस विषय में कारण क्या है कि (केवली णं आयाणेहिं न जाणइ, न पासह) केवली भगवान इन्द्रियों द्वारा पदार्थों को नहीं जानते देखते हैं ? तो इसके समाधान निमित्त प्रभु गौतम से कहते हैं कि ( गोयमा) हे गौतम । (केवली of पुरस्थिमेणं मियंपि जाणह, अमियंपि जाणइ ) केवली पूर्वदिशा में मित- परिच्छिन्न विषय को भी जानते हैं, और अमित- अपरिच्छिन को भी जानते हैं। क्यों कि जाव निव्वुडे दंसणे केवलिस्स) उन केवल गौतम स्वाभीना प्रश्न - ( केवली णं भते ! अयाणेहिं जाणइ पासइ १ ) હે ભદ્દત ! કેવળીભગવાન આદાના દ્વારા ( જેના દ્વારા વિષયને ગ્રહણ કરવામાં આવે છે એવી ઇન્દ્રિયા દ્વારા ) શું વિષયને જાણે છે અને દેખે છે? भडावीर प्रभुना उत्तर- ( णो इणट्टे सम ) डे गौतम! सेभ मनेतुं નથી. કેવળજ્ઞાની ઇન્દ્રિયા દ્વારા વિષયને જાણતા નથી. तेनुं ४२शु लघुवाने भाटे गौतम स्वाभी पूछे छे है ( से केणद्वेग केवली ण अयाणे हि न जाण, न पासह ) हे लहन्त ! आप शा अर मे કહેા છે કે કેવળજ્ઞાની ઇન્દ્રિયા દ્વારા પદાર્થોને જાણતા-દેખતા નથી ? उत्तर- ( गोयमा ! ) डे गौतम ! ( केवली णं पुरथिमेण मियंपि जाणइ, अमियौं पि जाणइ ) ठेवमज्ञानी पूर्व द्विशामां परिमित विषयने या भये छे અને અપરિમિત નિષયને પણ જાણે છે. એજ પ્રમાણે પશ્ચિમ, ઉત્તર, દક્ષિણ, ઊર્ધ્વ અને અા દિશામાં પણ તેઓ પરિમિત અને અપરિમિત વિષયને छे. (जाब निव्वुडे दुसणे केवलिशस ) अरण्य हे देवजी लगवान यावर श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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