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प्रमेयवन्द्रिका टीका श०५ उ०४ सू०११ केवलीधणीतमनोवच निरूपणम् ३०१ काराः प्रज्ञप्ता:-तान् द्विप्रकारान् आह-' तं जहा माइमिच्छादिट्ठी उववनगा य, अमाई सम्मदिट्ठो उपवनगा य,' तयथा मायिमिथ्यादृष्टयुपपन्नकाश्च-अनादि मायामिथ्यादृष्टिरूपे कुवासनावासितत्वात् कियन्तो वैमानिकेषु मायिमिथ्या दृष्टिरूपेग उत्पन्ना भवन्ति, अमायिसम्यग्दृष्टयुपपन्नकाच,-कियन्तश्च सदाचरण जन्यशुभभावना भावितत्वेनोत्पन्नविवेकतया मायारहितसम्यग्दृष्टिरूपेण उत्पन्ना भवन्ति, ' तत्थणं जेते माइमिच्छा दिट्ठी उववन्नगा' तत्र तेषां मध्ये खलु ये ते मायिमिथ्यादृष्टयुपपन्नकाः वैमानिकाः ' ते ण जाणंति, न पासंति' ते मायि मिथ्यादृष्टयुपपन्नका न तद् जानन्ति, न वा पश्यन्ति, अथच ' तत्थगं जेते अमाई सुनो-मैं तुम्हें बताता हूं कि केवलज्ञानी के प्रकृष्ट मन और वचन को सब ही वैमानिक देव क्यों नहीं जानते और देखते हैं-देखो-वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये हैं- 'तं जहा' वे ये हैं- 'माइमिच्छिादिट्ठी उववन्नगाय, अमाई सम्मदिट्ठी उववनगा य ' एक तो मायो मिथ्याष्टियों में उत्पन्न वैमानिक देव और अमायी सम्यक् दृष्टियों में उत्पन्न वैमानिक देव जो अनादिकाल से माया और मिथ्यादृष्टिरूप कुवासना से वासित बने रहते हैं वे कितनेक जीव वैमानिक देवों में मायी मिथ्या. दृष्टिरूप से उत्पन्न हो जाते हैं और जो अमापी सम्पादृष्टियों में उत्पन्न होते हैं वे कितनेक जीव सदाचरण जन्यशुभ भावना से भावित होने के कारण उत्पन्न विनेक वाले हो जाने से मायारहित सम्यग्दृष्टिरूप से वहां उत्पन्न होते हैं। 'तत्थ णं जे ते माइमिच्छादीही उववन्नगा' इन में जो मायी मिथ्यादृष्टिरूप से उत्पन्न वैमानिक देव हैं ' ते ण जाणंति, न पासंति ' वे केवल ज्ञानी के प्रकृष्ट मन और वचन को नहीं जानते
( माइमिच्छादिट्ठी उववन्नगा य, अमाई सम्मदिट्ठी उववनगा य)
(૧) માયી મિથ્યા દષ્ટિમાં ઉત્પન્ન થયેલા વૈિમાનિક દે. (૨) અમાયી સમ્યક્ દષ્ટિમાં ઉત્પન્ન થયેલા વૈમાનિક દે.
જે છે અનાદિ કાળથી માયા અને મિથ્યાદષ્ટિ રૂપ કુવાસનાથી યુક્ત રહેલા હોય છે, એવાં કેટલાક છે વૈમાનિક દેશમાં માથી મિથ્યાષ્ટિ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. અને જે જીવો સદાચરણ જન્ય શુભ ભાવનાથી ભાવિત હોય છે અને માયારહિત હોય છે, તેઓ વૈમાનિકે માં અમાથી સમ્યક્ દષ્ટિ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે.
“तत्थणं जे ते माइमिच्छादिछी उपवन्नगा, ते ण जाणति, न पासति" આ બનને પ્રકારના વિમાનિકમાંના માયી મિથ્યાદષ્ટિ વૈમાનિક દે કેવળज्ञानीना प्रष्ट भन अने पयनने पता नथी भने मता नथी. ( तत्थणं जे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪