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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श०५ उ०४ सू०६ नोसंयतस्वरूपनिरूपणम् २६५ हे भदन्त ! इति आमन्त्र्य भगवान गौतमः श्रमणं भगवन्त महावीरं वन्दते, नमस्यति, यावत्-एवम् वक्ष्यमाणप्रकारेग आदीत्-'देवाणं भंते ! संजयाति वत्तव्यं सिया ? ' हे भदन्त ! देवाः खलु 'संयताः' इति वक्तव्यं स्यात् ? संयत शब्देन देवा व्यपदेष्टुं शक्यन्ते किम् ? इति प्रश्नाशयः, भगवान् आह-'गोयमा ! जो इणढे समढे, अब्भक्खाणमेयं देवाणं ' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः नैतत्स ___टीकार्थ—देवों का अधिकार होने से सूत्रकार उनकी विशेषवक्तव्यता का निरूपण इस मंत्र द्वारा कर रहे हैं-इसमें 'भंते ! त्ति भगवं गोयमे भदन्त ! इस प्रकार से प्रभु को संबोधित करके भगवान् गौतम (समणं भगवं महावीरं वंदइ ) श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना करते हैं और ‘नमसइ' उन्हें पंचांग नमन पूर्वक नमस्कार करते हैं। 'जाव एवं वयासी' फिर वे यावत् इस प्रकार से प्रभु से पूछते हैं। 'देवाणं भंते ! संजया इ वत्तव सिया' हे भदन्त ! देवों को संयत शब्द द्वारा संबोधित किया जा सकता है क्या ? अर्थात् देव संयत' हैं। ऐसा कहा जा सकता है क्या ? इसके उत्तरमें प्रभु गौतमसे कहता हैं कि- 'गोयमा ! हे गौतम ! 'णो इण?' यह बात उनमें संभवती नहीं है- संयम पालन करने वाले को ही संयत शब्द से कहा जाता है देव संयम का आराधन नहीं कर सकते हैं क्यों कि उनमें चतुर्थ गुण स्थान से आगे बढ़ने की योग्यता नहीं होती है । ' अब्भक्खाणमेयं' देवों में संयत शब्द का प्रयोग करना-अर्थात् ऐसा कहना कि देव ટીકાઈ_દેવને અધિકાર ચાલતું હોવાથી, સૂત્રકાર આ સૂત્રમાં દેવનું વિશેષ નિરૂપણ કરવા માટે નીચેના પ્રશ્નોત્તરો પ્રકટ કરે છે – “भंते ! त्ति भगव गोयमे" महन्त !” मे भान समाधान उशन सगवान गौतम" "समण भगवं महावीर वदइ नमसइ" श्रमाय मगवान महावीरने । ४२ छ भने पांय मग नमावीन शाम ४२ छ. " जाव एवं वयासी" त्या२ मा तेसो भडावी२ प्रभुने नीय प्रभा प्रभो पूछे छ प्रश्न-“देवाण भो ! संजयाइ वत्तव्व सिया १” महन्त ! हे। સંયત હોય છે, એમ કહી શકાય ખરૂં ? उत्त२ “ गोयमा !" 3 गौतम ! “णा इणढे सम" वोमा मा વાત સંભવી શકતી નથી. સંયમનું પાલન કરનારને જ સંયત કહેવાય છે. દે સંયમનું પાલન કરી શકતા નથી. કારણ કે ચેથા ગુણસ્થાનથી આગળ १५वानी योग्यता १ तेमनामा डाती नथी. (अब्भक्खाणमेयं) हेवाने सयत શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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