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________________ २३२ भगवतीसूत्र कक्षा-प्रतिग्रह-रजोहरणम्-कक्षायां प्रतिग्रहकं पात्रं रनोहरणं चादाय गृहीत्वा बहिः प्रदेशे संपस्थितो विहाराय वामकक्षे रजोहरणं धृत्वा हस्ते सोदकपात्रिकां गृहोत्या शरीरचिन्तानिवारणार्थ गतवान् इत्यर्थः। 'तएणं अतिमुत्ते कुमारसमणे वाहयं यहाणं पासइ ' ततः खलु अतिमुक्तः कुमारश्रमणः वहमानमेकं वाहकं जलप्रवाहम् पश्यति, पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ ' दृष्ट्वा च मृत्तिकया पालिम् आलवालकल्पां बध्नाति 'बंधित्ता णावियामे. णाविया मे. नाविओ विया णाव मयं पडिग्गहगं उदगंसि कट्टु पवाहमाणे, पन्याहमाणे, अभिरमइ ' बद्धा पालि निर्माय 'नौका मम, नौका मम' इति व्याहरन् नाविकइव नावम्, यथा कर्णधारः रजोहरण को लेकर एवं हाथ में पात्र को लेकर बहिः प्रदेश में शरीर की चिन्ता निवारण करने के लिये-मुनियों के साथ पहार भूमि गये ( तएणं अइमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वहमानं पासइ) जाते हुए इन्हों ने किसी एक स्थान पर वर्षा के कारण यहते हुए पानी को देखा । (पासित्ता मट्टियाए पालि बंधइ ) बहते हुए पानी को देखकर उन्हों ने उसमें पानी रोकने के अभिप्राय से मिट्टी से पाली बांध दी। (बंधित्ता णाविया मे णाविया मे णाविओ विव णावमयं पडिग्गहर्ण उदगंसि कट्टु पव्वाहमाणे अभिरमइ) पाली बांधकर उसमें अपने पात्र को रखकर बोले ' यह मेरी नौका है यह मेरी नौका है' इस प्रकार मानसिक विकल्प करते हुए ये पात्र को पानी में तिराते हुए नाविक की तरह वहां पर पानी में अपने पात्र को पहा२ कर क्रीडा करने लगे-तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार कोई नाविक-कर्णधार नौका गह-रयहरणमायाए बहिया संगठ्ठिए विहाराए" तेस तमनी सासमा २२२५५ ધારણ કરીને અને હાથમાં પાત્ર લઈને શૌચક્રિયા કરવાને માટે (ઝાડે ફરવાને भाट) मडार नीन्या . “तएणं अइमुत्ते कुमारसमणे वाहय वाहमान पासह" જતાં જતાં રસ્તામાં તેમણે એક સ્થાને વરસાદના પાણીના પ્રવાહને વહેતે नयी. “पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ” पडता पानी धाराने ने भो पाणी ४ाने माटे भाटी 43 पण मांधी "बंधित्ता णाधिया मे णाविया मे, णाविओवि व णावमय पडिग्गहणं उदगंसि को पव्वाहमाणे पवाहमाणे अभिरमह" પાણીના પ્રવાહ આડી પાળ બાંધીને પાણીમાં પિતાના પાત્રને તરતું મૂકીને બેલી ઉઠયા, “આ મારી નૌકા છે, આ મારી નૌક છે.” આ રીતે મનમાં કપના કરતાં કરતાં તેઓ નાવિકની જેમ પિતાના પાત્રરૂપી નાવડીને પાણીમાં તરાવતા તરાવતા કીડા કરવા લાગ્યા. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જેમ કોઈ નાવિક તેની નાવડીને જળપ્રવાહમાં તરાવે છે, એવી રીતે બાલમુનિ અતિમુક્તક श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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