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________________ भगवती सू ' दुभिसद्दाणि वा दुन्दुभिशब्दान् वा दुन्दुभिः देववाद्यविशेषः नगाडाइति भाषामसिद्धः तस्य शब्दान् 'तयाणि वा वितयाणि वा, घणाणि वा, झुसिराणि बा ! ' ततानि वा तन्त्रीयुक्तानि वीणादिवाद्यानि एवं विततानि वा पटहादीनि, घनानि वा कांस्यतालादीनि शुषिराणि वा = वंशादीनि तेषां शब्दान् शृणोति ? उक्तश्च- ततं वीणादीकंज्ञेयं विततं पटहादिकम् । 44 घनंतु कांस्यतालादि, वंशादि शुषिरं मतम् " ॥ १ ॥ इति । भगवानाह - 'हंता, गोयमा ! इत्यादि । हे गौतम ! हन्त, सत्यम् 'छउमत्थे णं म से आउडिज्जमणारं सदाई सुणेइ ' छद्मस्थः खलु मनुष्यः आकुटयमानान् मुखादिना सह शङ्खदीनां संयोजनया जायमानान् शब्दान् शृणोति । तान् शब्दान् प्रदर्शयति - ' तं जहा - संख सदाणिवा जाव सराणि वा ' तद्यथी - शङ्ख शब्दान् उसका नाम झल्लरी है- जिसे भाषा में झालर कहते हैं । बजने पर जो इसकी आवाज निकलती है वे झल्लरी शब्द हैं 'दुंदुभिसद्दाणि वा ' देवों का जो बाजा होता है उसका नाम दुंदुभि है इस दुंदुभि के बजने पर जो आवाजे निकली हैं वे दुंदुभि शब्द हैं। भाषा में इन्हें नगाडे के शब्द कहा जाता है । ' तयाणि ' तांतों से युक्त बीणा आदि के शब्दों का नाम तत है । ढोल वगैरह के शब्दों का नाम वितत है । कांसी और ताल वगैरह के शब्द धन हैं । वाँसुरी आदि के शब्द शुषिर हैं इन सब प्रकार के बाजों के शब्दों को क्या छद्मस्थ मनुष्य सुन सकता है ? इसके उत्तर में भगवान् गौतम से कहते हैं - 'हंता गोयमा' हां, गौतम | 'छमत्येणं मणुस्से आइडिजमाणाई सहाई सुणेड़ ' छद्मस्थ मनुष्य इन आकुदयमान शब्दों को सुनता है । त जहा ' वह ' संखसद्दाणि 6 १९४ 4 "6 નાદ 'लेरीनाह ” हे छे. ( झल्लरीसद्दाणि वा ) गोजाअरनी आसर ( घंटे ) सामान्य રીતે કાંસાની બને છે. તેને વગાડવાથી જે અવાજ નીકળે છે. તેને “ ઝલ્લરીछे, ( दुदुभिसण वा ) हेवाना नजाराने हुहुलि उडे छे. સામાન્ય નગારાના કરતાં તે મેાટુ' હાય છે. તેના ધ્વનિને દુંદુભિનાદ ’’ કહે छे ( तयाणि ) वीणा भाहि तारथी युक्त वानिंत्रोना ध्वनिने " तत " उडे છે ઢાલ આદિના નાદને ” વિતત” કહે છે કાંસાં, કરતાળ આદિના ધ્વનિને ܕܕ C ઘન ’ કહે છે અને વાંસળી આઢિ વાદ્યોનાં ધ્વનિને ‘શુષિર ’ કહે છે ઉપરોક્ત ખધા પ્રકારના ધ્વનિને શું છદ્મસ્થ મનુષ્ય સાંભળે છે ? गौतभना थे प्रश्ननो उत्तर भापता महावीर प्रभु उडे छे, 'ह'ता गोयमा' डा, गौतम ! (छउमत्थेणं मणुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाई सुणेइ ) छद्मस्थ मनुष्य वांन्नित्रोने वजाडवाथी थतां ध्वनिने सांगणे छे' तं जहा ' छे उया या ध्वनिने सांगणे छे ते स्पष्ट उरता अनु उडे छेडे ( संखसद्दाणि वा जाव सुसिराणि वा ) श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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