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भगवतीसूत्रे व्यावुष्क प्रकुर्वन् द्विविधं द्विपकारक कर्म उपार्जयति, संमूच्छिम-गर्भव्युत्क्रान्ति भेदात् । तथा ' देवाउयं चउन्विहं ' देवायुष्क प्रकुर्वन् चतुर्विधं प्रकरोति, भवन पति-वानव्यन्तर- ज्योतिषिक-वैमानिकभेदात् चतुः प्रकारक देवायुष्यं प्रज्ञप्तम् । उयं दुविहं ' मनुष्यायु को भी वह दो विभागों में बांट देता है। समूछिम मनुष्यायु में और गर्भजमनुष्यायु में । यदि अल्प आरंभ और अल्पपरिग्रह के रखने से जीव ने प्रकृतिभद्रकता-स्वभाव की कोमलता, प्रकृतिविनीतता-स्वभाव की नम्रता, सानुक्रोशता-सदयता और अमसरता आदि कारणों को लेकर मनुष्य आयुका बन्ध कर लिया है तो ऐसा जीव मनुष्यगति में उत्पन्न होगा, यदि उसने संमूच्छिम मनुष्यों में उत्पन्न कराने वाली आयु कर्म के कारणभूत आचरणों का अनुष्ठान किया है तो वह मर कर इनमें जन्म धारण करेगा और यदि गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य आयु कर्म के कारणभूत कार्यों का सदनुठान किया है और इससे उसने मनुष्यायु का बंध किया है तो वह इम गर्भज मनुष्यों में जहां पर उसके उत्पन्न होने की योग्यता होगी वहां पर उत्पन्न होगा। 'देवाउयं चउन्विहं' इसी प्रकार से यदि जीय ने सराग सम्पत्स्व-सरागसंयम, संयमासयम-(देशविरति ) अकाम. निर्जरा-बालतपः कर्म आदि कारणों के प्रभाव से देवायु का बंध कर लिया है तो वह उस आयु को चार विभागों में विभक्त कर सकता है। " भवनपति में, वानव्यन्तर में, ज्योतिषिक में, एवं वैमानिकों में । इनमें भी जिस निकायके भेदके योग्य आयु कर्मका बंध जीवने किया (१) सभूमि भनुष्यायु अने (२) म मनुष्यायु.
જે જીવે છે આરંભ અને ઓછો પરિગ્રહ કર્યો હશે, અને જે ભક્તિા , વિનીતતા, દયા, અને અમત્સરતા આદિ ગુણને કારણે મનુષ્પાયુને બંધ કર્યો હશે તો એ જીવ મનુષ્યગતિમાં ઉત્પન્ન થશે. જે તેણે સંમૂચ્છિમ મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય આયુકમને કારણભૂત કાર્યોનું સેવન કર્યું હશે તે તે સંમૂછિમ મનુષ્યમાં જન્મ ધારણ કરશે. જે જીવે ગર્ભજ મનુષ્યોમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય આયુકર્મને બંધ કર્યો હશે, તે તે ગર્ભજ મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન थशे. “ देवाउय' चउविह" वायुना या२ २ ४ा छ-(१) सपनपति (२) पान०यन्त२ (3) ज्योतिषि मने (४) मानि.
જે જીવે સરાગ સમ્યકત્વ-સરાગ સંયમ, સંયમ સંયમ (દેશ વિરતી) અકામ નિર્જરા (બાલત૫) આદિ કારણેને પ્રભાવે દેવાયુને બંધ કર્યો હશે, તે તે દેવગતિમાં ઉત્પન્ન થશે. ઉપરોક્ત ચાર પ્રકારની દેવગતિમાંથી
श्री.भगवती सूत्र:४