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________________ १३६ भगवतीसूत्रे पडुच्च' पूर्वभावमशाएना प्रतीत्य-पूर्वावस्थामनुसृत्य ' तसपाणजीवसरीरा' असप्राण जीवशरीराणि तओ पच्छा' ततः पश्चात् 'सत्थाईआ' शस्त्रातीतानि 'जाव-अगणि त्ति वत्तव्यं सिया' यावत् अग्निजीवशरीराणि इति वक्तव्यं स्यात् 'यावत्करणात्-शस्त्रपरिणामितानि अग्निध्यामितानि, अग्निजोषितानि, अग्निसेवितानि, अग्निपरिणामितानि ' इतिसंग्राह्यम् ! पुनगौतम पृच्छति- अह भंते ! इंगाले' इत्यादि। अथ हे भदन्त ! अङ्गारः ज्यालाघूमरहिताग्निमात्रावशिष्टदग्धेन्धनम् , ' छारिए ' क्षारकम् भस्म, 'भुसे' घुसम्-तुषः, 'गोमए ' गोमयः करीषः अत्र च बुसगोमये भूतपूर्वपर्यायानुवृत्या दग्धावस्थे गृहीतव्ये अन्यथा अत्रैव वक्ष्यमाणाग्निध्यामितादि विशेषणदानानुपपत्तिरापचेत 'एएणं' एतानि खलु अङ्गारादि गोमयान्तानि 'किं सरीरा' किं शरीराणि पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा विचार करने पर (तसपाणजीवसरीरा) जसप्राणीयों के शरीर हैं, परन्तु (तओ पच्छा) जब ये त्रस जीव से रहित होने के बाद (सत्थाईया) शस्त्रादि द्वारा अपनी पूर्व पर्याय से दूसरी पर्याय से आक्रान्त हो जाते हैं और अग्नि द्वारा तप्त होकर राख रूप परिणामवाले बन जाते हैं तब ये (अगणि त्ति वत्त सिया) अग्नि जीव के शरीर कहलाने लगते हैं। ___ अब गौतम स्वामी प्रभु से पुनःपूछते हैं कि (अह णं भंते !) हे भदन्त ! (इंगाले) ज्वाला और धूम से रहित अग्नि से युक्त दग्ध इंधन, (छरिए ) भस्मराख, (भुसे) भुस, (गोमए) गोमय-गोयर इनमें से भुस और गोबर ये भूतपूर्व प्रज्ञापनानय की अपेक्षा से दग्धावस्थावाले लिये गये हैं नहीं तो आगे आने वाले ध्यामित आदि विशेषणों की संगति इनके साथ नहीं बैठ सकती है। इस तरह (एएणं) ये अंगार से लगाकर गोमय तक के पदार्थ (किं सरीरा) किन के शरीर " तसपाणजीब सरीरा" सामान २ छ, ५२न्तु “ तओ पछा" त्या२ ४ न्यारे ते “ सस्थाईया " शसाहा । तभनी पूर्व पर्यायथा રહિત થઈને બીજી પર્યાયમાં આવી જાય છે અને અગ્નિદ્વારા તપીને રાખરૂપે परिणभी तय छ, त्यारे " अगणि त्ति वयव्वं सिया” भने मसिना શરીર કહેવામાં આવે છે. प्रश्न- “अहण भते ! " 3 महन्त ! " इंगाले " Mala मने घुमाथी २डित ४५ धन, "छारिए" २५, “भुसे " भूसु, "गोमए" मर (छा५५), " एए णं " पहा “ कि सरीरा" या वानां शरीर छ ? श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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