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________________ १३० भगवतीसूत्रे भगवानाह-' गोयमा ! ' हे गौतम ! 'ओदणे, कुम्मासे, सुराए य' ओदने कुल्माषे सुरायां च द्वे द्रव्ये भवतः घनद्रव्यं, द्रवद्रव्यं च, तत्र ‘जे घणेदव्वे' यानि धनानि द्रव्याणि सन्ति ' एएणं' एतानि खलु 'पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च' पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य पूर्वावस्थाम् अनुसृत्य पूर्वभावप्रज्ञापनापेक्षयेत्यर्थः 'वणस्सहजीवसरीरा' वनस्पतिजीवशरीराणि कथ्यते । तओ पच्छा ' ततः पश्चात् तदनन्तरं यदा तानि ओदनादीनि द्रव्याणि ' सत्थाईआ' शस्त्रातीतानि, शस्त्रैः उदुर लमुशललीऽप्रभृतिभिराकुट्टनसाधनैः अतीतानि आकुट्टन द्वारा पूर्वपर्यायम् अतिक्रान्तानि-आकुट्टितानि भवन्ति तथा सत्थपरिणामिआ' शस्त्रपरिउत्तर में प्रभु कहते हैं कि ( गोयमा ) हे गौतम ! (ओदणे, कुम्मासे, सुराए य) ओदन, कुल्माष और सुरा इन पदार्थों में दो प्रकार के द्रव्य होते हैं, एक घनद्रव्य और दूसरा द्रव द्रव्य । अर्थात् ओदनादिक पदार्थ घनद्रव्य और द्रव ( ढिला) द्रव्य इस तरह से दो प्रकार की घस्तुओं वाले होते हैं। जैसे शराब में गुड़ वगैरह तो कठिन घनपदार्थ रहता है और द्रवरूप प्रवाही पदार्थ पानी रहता है। इसलिये उसमें (जे घणे दवे ) जो घन द्रव्य हैं, वे ' पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च ' अपनी पूर्वभावप्रज्ञापना के अनुसार पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से 'वणस्सइसरीरा' वनस्पति जीव के शरीर कहे जाते हैं । ( तओ पच्छा) और इसके बाद जब वे ओदनादिक द्रव्य ( सत्थाईया ) शस्त्रातीत-शस्त्रों उखल-ओखली, मुशल-मूसर, खलीन आदि कूटने के साधनों-से आकुट्टनक्रिया द्वारा पर्यायान्तरित हो जाते हैं अपनी पूर्वपर्याय से रहित होकर दूसरी पर्याय से युक्त हो जाते हैं, (सत्थपरिणामिया ) शस्त्र. परिणामित हो जाते हैं स्व, पर और उभय के शस्त्रों द्वारा कृत अन्य उत्तर- " गोयमा !" उ गौतम! “ ओदणे, कुम्मासे, सुराए य” सोहन, કુલત્થ અને મદિરામાં બે પ્રકારનાં દ્રવ્ય હોય છે- ઘનદ્રવ્ય અને પ્રવાહીદ્રવ્ય એટલે કે દનાદિ પદાર્થ ઘનદ્રવ્ય અને દ્રવ (પ્રવાહી) દ્રવ્ય વાળાં હોય છે મદિરામાં ગેળ વગેરે ઘનદ્રવ્ય હોય છે અને પ્રવાહીરૂપ પાણી પણ હોય છે तेथी तभा “जे घणे व्वे" २ घनद्रव्य छ, ते " पुव्वभावपन्नवण' पडुच्च " पूमा प्रज्ञापन नयनी अपेक्षा "वणस्सइ सरीरा” वनस्पति नi શરીર કહેવાય છે પૂર્વભાવ પ્રજ્ઞાપના વસ્તુની અતીત પર્યાયનું ( પહેલાંની पर्यायर्नु) नि३५५५ ४२ छ. " तओ पच्छा" त्या२ मा न्यारे ते मोहनाहि द्रव्यने “सत्थाईया" भूस, माउशिया, मांडी, ५२१ माह शसो-साधना દ્વારા ખાંડવામાં આવે છે અને તેમને પર્યાયાન્તરિત કરવામાં આવે છે, એટલે કે પહેલાંની પર્યાયથી રહિત બનાવીને બીજી પર્યાયથી યુક્ત કરવામાં આવે છે, त्यारे तेस। “ सत्थपरिणामिया” शस्त्र परियाभित थ य छ-२१ ५२२"24 श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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