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________________ १२८ भगवतीसूत्रे व्यं स्यात् ? गौतम ! अस्थि, चर्म, रोम, शृङ्गम्, खुरः, नखः, एते त्रसमाण जीव शरीराणि, अस्थिध्यामम्, चर्मध्यामम्, रोमध्यामम् शृङ्ग-खुर-नखध्यामम्, एतानि पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य त्रसमाण नीवशरोराणि ततः पश्चात् - शस्त्रातीतानि यावत् - अग्निः - इति वक्तव्यं स्यात् ? गौतम ! अङ्गारः क्षारकम्, बुसम्, " एएणं किं सरीर इ वतव्वं सिया) हे भदन्त ! हड्डी, जलीहुई हड्डी, चर्म, जला हुआ चर्म, रोम, जले हुए रोम, सींग, जला हुआ सींग, खुर, जला हुआ खुर, नख, जला हुआ नख, ये सब पदार्थ किन जीवों के शरीर माने जा सकते हैं ? (गोयमा ! अट्ठी, चम्मे, रोमे, भिंगे, खुरे, नहे, एएणं तसपाणजीवसरीरा, अट्ठिज्झामे, चम्मज्झामे, रोमज्झामे, सिंग खुर नखज्झामे एएणं पुब्वभावपनवणं पडुच्न, तसपाणजीवमरीरा, तओ पच्छा सत्थाईया, जाव अगणित्ति वतव्वं सिया ) हे गौतम ! हड्डी, चमड़ा, रोम, सींग, खुर, नख, ये सब बस जीव के शरीर हैं और दग्धहड्डी, जला हुआ चमड़ा, जला हुआरोम, जला हुआ सींग, जला हुआ खुर, जय हुआ नख, ये सब भी पूर्व भावप्रज्ञापन नय की अपेक्षा करके सजीव के शरीर हैं, परन्तु जब ये ही पदार्थ शस्त्र द्वारा संचनि हो जाते हैं तब यावत् ये सब अग्निकाय जीव के शरीर कहे जा सकते हैं । ( अह भंते ! इंगाले, छारिए, भुसे, गोमए, एएणं किं सरीरा इ वसव्वं सिया ) हे भदन्त ! अङ्गार, राख, भुसा, गोवर ये सब किस जीव के शरीर माने गये हैं ?, (गोयमा ! इंगाले, छारिए, भुसे, नखज्झामे, एरणं कि सरीगइ वत्तव्वं सिया ? ) हे लहन्त ! हाड, जजेसां डाउअं, शर्मा, जजेसु शर्मा, राम गणेसा राम, शींगडां, मणेसां शींगडां जरी, जजेसी मरी, નખ ખળેલા નખ, એ પદાર્થાને કયા જીવના શરીર ह्या छे ? ( गोयमा ! अट्ठि, चम्मे, रोमे, सिगे, खुरे, नहे एए णं तसपाणजीव सरीग, अद्विज्झामे, चम्मज्झामे, रोमज्झामे, रोमे, -सिंग, खुर, नखज्झामे, एए णं पुव्वभावपन्नत्रणं पडुच्च, तसपाणजीवसरीरा, तओ पच्छा सत्याईया, जाव अगणित वत्तव्वं सिया) हे गौतम! डाडा, शर्मा, रोभ, शिंगडा, जरी अने નખને ત્રસજીવનાં શરીર કહ્યાં છે, દગ્ધહાડકાં, દગ્ધચમ, દગ્ધરામ, દુગ્ધશિંગડાં, દુગ્ધખરી અને દુગ્ધનખને પૂર્વભાવ પ્રજ્ઞાપન નયની અપેક્ષાએ ત્રસજીવનાં શરીર કહ્યાં છે, પરન્તુ જ્યારે એ પદાર્થોને શસ્રદિ દ્વારા ફૂટવામાં આવે છે. અથવા અગ્નિદ્વારા ઉપક્તિ જુદી જુદી ક્રિયા કરવામા આવે છે ત્યારે તેમને અગ્નિआय लवनां शरीर डेवामां आवे छे अह भंते ! इंगाले छारिए, भुसे, गोमए, एए ण कि सरीरा व सिया ? ) ३ लहन्त ! अगार, राय, लूसु, अने छाने या कवीनां शरीर ह्यां छे ? (गोयमा । इंगाले, छारिए, भुसे, गोमए ( श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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