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________________ १२० भगवतीसूत्रे मन्दावाताः, महावाताः वान्तीति, १ भगवानाह-'हंता, अस्थि 'हे गौतम ! हन्त, सत्यम् अस्ति-संभवति त्वदुक्तम्, गोतमस्तत्रहेतुं पृच्छति-' कयाणं भंते ! ' हे भदन्त ! कदाखलु 'ईसिपुरेवाया ' ईष त्पुरोवाताः पन्थावाता० ! ' पथ्यावाताः, मन्दावाताः, महावाता वान्ति ! भगवान् तत्र तृतीय हेतु प्रतिपादयति-'गोयमा- ! हे गौतम ! 'जयाण वाउकुमारा ' यदा खलु वायुकुमाराः, 'वाउकुमारीओ' वायुकुमार्यः ' अप्पणो वा आत्मनोवा, स्वस्य वा 'परस्स वा' परस्य वा अन्यस्यवा, 'तदुभयस्सवा' तदुभयस्य वा आत्मनः परस्य च ' अट्ठाए' अर्थाय-प्रयोजनाय 'वाउकायं' वायुकायम् 'उदी. रेति' उदीरयन्ति ' तयाणं' तदाखलु — ईसिं पुरेवाया' ईषत्पुरोवाताः 'जावहेतुको जाननेके अभिप्राय से गौतम अब प्रभुसे पूछते हैं कि-(अस्थि ण भंते ! ईसिंपूरेवाया०)हे भदन्त ! ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ चलती हैं क्या ? उत्तर में प्रभु करते हैं कि (हंता अस्थि ) हां गौतम ! ईषत्पुरोवात पथ्यवात आदि वायुएँ चलती हैं । (कया णं भंते ! ईसिंपुरेवाया . ) हे भदन्त ! ये ईषत्पुरीवात, पथ्यवात, मन्दवात, और महावात वायुएँ कब चलती हैं अर्थात् इनके चलने में कारण क्या है इस बात को स्पष्ट करने के लिये प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! ( जया णं ) जब ( वाउकुमारा) वायुकुमार ( वाउकुमारीओ) वायुकरियां, ( अप्पणो वा परस्स वा) अपने प्रयोजन के लिये अथवा दूसरे के प्रयोजन के लिये तदुभयस्स) या अपने दूसरे दोनों के ( अदाए ) प्रयोजन के लिये (वाउकायं उदीरेंति) वायुकाय को उदीरते हैं (तयाण) હવે વાયુઓના વહનનું ત્રીજું કારણ બતાવવા માટે સૂત્રકારે નીચેના प्रश्नोत्तरे। माया छ-( अस्थि णं भंते ! ईसिपुरेवाया ) 3 महन्त ! प.पु. વાત આદિ વાયુઓ શું વાતા હોય છે? उत्तर-(हता, अस्थि ) 31, गौतम ! पत्पुरोधात, पथ्यपात माह વાયુઓ વાય છે. -याणं भंते! ईसिंपुरेवाया.) महन्त ! Uषत्रावात माहवायुसे। કયારે વાય છે? એટલે કે તે વાયુઓ શા કારણે વાય છે ? तपायमान बननुत्री १२५ तापामा मावे छे. (गोयमा) गीतम! (जयाण) यारे ( वाउकुमारा) वायुभा२। मन (वाउकुमारीओ) पायुमारीसा (अपणो वा परस्स वा) पाताना प्रयोशनने माटे अथवा अन्यना प्रयासनाने माट मया ( तदुभयस्स) उभयना (पोताना मने अन्यना) प्रियासनने भाट (वाउकाय उदीरे ति ) पायुयनी ही२६॥ ४२ छे. ( तयाणं) त्यारे (ईसि पुरेवाया) षत्पुशपात (जाव वायति) पथ्यातव, श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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