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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० १ वायुस्वरूपनिरूपणम् ११७ 'ईसिंधुरे वाया ' ईपत्पुरो वाताः 'पच्छा वाया' पथ्या वाताः, ‘मंदा वाया' मन्दाः वाताः, 'महा वाया' महावाताः ‘वायति ? ' वान्तीति ? एतत्पश्न वाक्यस्य वक्ष्यमाणवातमवहण हेतुत्रयाभिधानस्य प्रस्तावनार्थतया पूर्वोक्तेन सूण पौनरुक्त्यं नाशङ्कनीयम् । भगवानाह--'हंता, अस्थि' हन्त, सत्यम् , अस्ति संभवत्येतत् । अथ वक्ष्यमाणवातप्रवहणहेतुं विज्ञातुं गौतमः प्रश्नयति'कयाणं भंते ! ' इत्यादि । हे भदन्त ! कदा खलु 'ईसिंपुरे वाया० ' ईषत्पुरो वाताः 'जाव-वायति ? ' यावत् वान्ति ? यावत्करणात् 'पथ्या वाताः, मन्दा वाताः, महावाताः' इति संग्राह्यम् । भगवान् प्रथमहेतुं प्रतिपादयन्नाह-'गोयमा!" वाया, महावाया, वयंति) गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! ईषत्पुरोवायु, पथ्यवायु, मंदवायु और महावायु ये चार वायु चलते हैं क्या ? यहां पर ऐसी (आशंका नहीं करनी चाहिये कि यह सूत्र तो पीछे आ चुका है-अतःपुन यहां पर इस सूत्र को कहने से पुनरुक्ति नाम का दोष आता है ) क्यों कि पहिले जो सूत्रकहा गया है वह तो प्रस्तावनारूप से कहा गया है और यहां जो यह सूत्र कहा गया है वह इन वायुओं के हेतुत्रय को बताने के निमित्त ये कहा गया है। अतः भिन्नार्थाभिधायकता होने से यहां पुनरुक्ति दोष की प्राप्ति नहीं होती है। __इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अ. स्थि) हां गौतम ! ये पूर्वोक्त ईषत्पुरोवायु आदि वायुएँ चलती हैं। ___ अब गौतम इन ईषत्पुरोवायु आदिके चलने में कारणको जानने की इच्छा से प्रभु से पूछते हैं कि (कया णं भंते ! ईसिंपुरेवाया० जाव वायंति) भंते ! ईसि पुरेवाया, पत्थावाया, मंदावाया. महावाया वायति ?" महन्त ! ઇષપુરવાત, પથ્યવાત, મન્દવાત, ને મહાવાત એ ચારે વાયુએ શું થાય છે ખરાં? (અહીં એવી આશંકા ન કરવી જોઈએ કે આ સૂત્ર તે આગળ આવી ગયું છે. અને અહીં ફરીથી એજ સૂત્ર કહેવાથી પુનરુક્તિ દોષ લાગે છે. કારણ કે પહેલાં જે સૂત્ર કહેવામાં આવ્યું છે, તે પ્રસ્તાવનારૂપે કહ્યું છે, અને અહીં એ સૂત્ર એ વાયુઓની ગતિના ત્રણ કારણો બતાવવાને નિમિત્ત કહેવામાં આવેલું છે તેથી ભિન્નાથભિધાયક્તા ( જુદા જુદા હેતુઓ) હોવાને કારણે અહીં પુનરુક્તિ દોષ લાગવાને સંભવ નથી ) મહાવીર પ્રભુ તેને ઉત્તર આપતા ४छे-(हंता, अस्थि ) डा. गौतम ! पूरित ४५ पुशवायु माल वायुसेवाय छे. प्रश्न-(कयाणं भंते ! ईसि पुरेवाया, जाव वायति ) मत! ते ५५ शपात 6 वायुमे। ज्यारे पाय छ ? (मडी (जाव) ५४थी पथ्यपात, મન્દવાત અને મહાવાત, એ ત્રણ વાયુઓ ગ્રહણ કરવા જોઈએ). श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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