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भगवतीसूत्रे तया विद्यमानत्वेऽपि अविचमानप्रायत्वात् । गौतमः पृच्छति-'कण्हराईओ णं भंते ! केरिसियाओ वन्नेणं पण्णत्ताओ?' हे भदन्त ! कृष्णराजयः खलु कीदृश्यो वर्णेन प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! कालाओ, जाव-खिप्पामेव वीईवएज्जा' हे गौतम ! कृष्णराजयो वर्णेन कृष्णाः अन्धकारमयत्वात् , अतएव तमस्कायवत् अतिभयङ्करसात् देवोऽपि यावत्-क्षिपमेव व्यतित्रजेत् झटित्येव उल्लङ्घय गच्छेत् , यावत्करणात्-कालावभासाः, गम्भीररोमहर्ष जनन्यः, भीमाः, उत्त्रासनिकाः, परमकृष्णाः प्रज्ञप्ताः, देवोऽस्त्येकको यस्तत्पथमतया दृष्ट्वा क्षुभ्येत् , अथाभिसमागजैसा है। गौतम प्रभु से पुनः प्रश्न करते हैं ( कण्हराईओ णं भंते ! केरिसियाओ वन्नेणं पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! ये कृष्णराजियां वर्ण से कैसी कही गई हैं-अर्थात् इन कृष्णराजियों का वर्ण कैसा है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! (कालओ जाव खिप्पामेव वीईवएज्जा) ये कृष्णराजियां अंधकारमय होने के कारण वर्ण से काली कही गई हैं। अतएव तमस्काय की तरह अति भङ्कर होने के कारण इन्हें देव भी यावत् बहुत ही शीघ्रता के साथ उल्लंधित कर चला जाता है। यहां यावत्पद से (कालावभासाः गम्भीररोम हर्षजनन्यः भीमाः उत्त्रा सजनिकाः, परमकृष्णा प्रज्ञप्ताः) इन कृष्णराजियों में इन पूर्वोक्त विशेषणों को भी गृहीत करलेना चाहिये-यह प्रकट किया गया है। इन विशेषणों का अर्थ तमस्काय के प्रकरण में लिखा जा चुका है। तात्पर्य कहने का यह है कि कोई एक देव यदि इन्हे सर्वप्रथम देखता है तो वह देखते ही क्षुभित हो उठता है। यदि कदाचित् कोइ देव इनके समक्ष
गौतम स्वामीना प्रश्न-( कण्हराइओ ण भते ! केरिसियाओ वन्नेण पण्णत्ताओ १) महन्त! ४०५२रिया पd पीछे ? ये है वा वनी छ ?
उत्तर-(गोयमा ! ) 3 गौतम ! ( काला ओ जाव खिप्पामेव वीईवएज्जा) તે કૃષ્ણરાજિ એ અંધકારમય હોવાથી વણે કાળી કહી છે. તેને વર્ણ તમને સ્કાયના જે જ ભયંકર હોય છે, દેવ પણ અતિશય શીઘ્રતાથી એળિગીને पार ४ीने यास्या 14 छ. २५ " जाव (यावत् )" ५४थी (कालावभासाः गम्भीररोमहर्ष जनन्यः, भीमाः उत्त्रासजनिकाः परमकृष्णा प्रज्ञप्ताः) मा पूर्वरित વિશેષણે પણ ગ્રહણ કરવા જોઈએ, એમ બતાવવામાં આવ્યું છે. આ વિશેષનો અર્થ તમસ્કાયના પ્રકરણમાં આપવામાં આવ્યું છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે કેઈક દેવ જે તેમને સૌથી પહેલીજવાર દેખે છે, તે તેમને જોતાં
श्री. भगवती सूत्र:४