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________________ २०१० भगवती सूत्र उपरि 'हिहिं बंमलोए कप्पे रिद्वविमाणपत्थडे ' अधः अधस्तात् ब्रह्मलोके कल्पेअरिष्टे अरिष्टनामके विमानप्रस्तटे 'एत्थ णं अक्वाडगसमचउरंससंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ' अत्र खलु सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पयोः उपरिष्टात् ब्रह्मलोक कल्पस्य अधस्तात् अरिष्टनामविमानप्रस्तटे, अक्षवाटकसम चतुरस्रसंस्थान संस्थितः, अक्षवाटकः मल्लयुद्रस्थानविशेषः तद्वत् समचतुरस्रसंस्थानसंस्थिताः सहशचतुष्कोणाकारेण स्थिताः अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः । ता अष्ट कृष्णराजी: प्रदर्शयति-तं जहा' तद्यथा-' पुरथिमेणं दो' पञ्चत्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो' पौरप्त्ये-पूर्व दिग्भागे द्वे कृष्णराजी, तथा पश्चात्ये पश्चिमदिग्मागे द्वे कृष्णराजी, तथा दक्षिणे दिग्भागे ट्रे कृष्णराजी तथा उत्तरे-उत्तरदिग्भागे द्वे कृष्णराजी वर्तेते, इति सर्वाः संमील्य अष्टौ संजाताः । तत्र 'पुरथिमऽभंतरा कण्हराई दहिगबाहिरं कण्हराई पुट्ठा ' पौरस्त्याभ्यन्तरा पूर्वदिग्भागाभ्यन्तरवर्तिनी कृष्णराजिः दक्षिणबाह्यां दक्षिणदिगभाग रहिर्वतिनों कृष्णराज स्पृष्टा स्पृष्टवतीत्यर्थः, ' स्पृष्टा ' इत्यत्र कर्तरिप्रयोग आपत्वात् । एवमग्रेऽपि ण) सनत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग के ऊपर और ( हेडिं बंभलोए कप्पे रीटे विमाणपत्थडे ) ब्रह्मलोक कल्प में नीचे रिष्टनामके विमानप्रस्तट में (एत्थ णं अक्वाडगसमचउरंस संठाणसंठियाओ अट्ट कण्हराई ओ पण्णताओ) नृत्यादिस्थान के समान चौकोर आकार से-समचतुरस्र संस्थान से-ये आठ कृष्णराजियां स्थित हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं" पुरथिमेणं दो, पच्चस्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो" पूर्वदिग्भाग में दो कृष्णराजियां, तथा पश्चिमदिग्भाग में दो कृष्णराजियां, तथा दक्षिणदिग्भाग में दो कृष्णराजियां, तथा उत्तरदिग्भाग में दो कृष्णराजियां हैं। इस तरह ये सब मिलकर आठ कृष्णराजियां हो जाती हैं । (पुरस्थिमऽब्भतरा कण्हराई दाहिणबाहिरं कण्हराई पुट्ठा) इनमें ___Gत्तर--(गोयमा ! ) 3 गौतम ! ( उपि सणकुमार माहिदाण' कप्पाण) सनभार भने भाउन्द्र सोनी ०५२ (हेदि वभलोए कप्पे रिठे विमाणपत्थडे ) मने ब्रह्मा ४६५नी नीय रिट नामना विमान प्रस्तटमा ( एथण अक्खाडगसमचउरससंठाणसंठियाओ अटू कण्हराईओ पण्णत्ताओ ) समान २१ समन्यारस मारे ते 248 ४०६२शिया २९सा छे. “ तंजहा" ते प्रमाणे छे-(पुरस्थिमेण दो) पू हिशाम मे लिये।, ( पच्चत्थिमेण दो) पश्चिम म मे १०४२रिसी, (दाहिणेण दो, उत्तरेण दो) दक्षिणमा मे કુણરાજિઓ અને ઉત્તરમાં બે કૃષ્ણરાજિઓ છે. આ રીતે બધી મળીને આઠ शनि, थाय छे. (पुदत्थिमऽभतरा कण्हराई दाहिणवाहिर' कण्हराई पुद्वा ) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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