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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ६ उ०५ सू०२ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् २०११ सनत्कुमार-माहेन्द्रयोः कल्पयोः, यो ब्रह्मलोके कल्पे खलु रिष्टेविमानमस्तटे अत्र अक्षवाटकसमचतुरस्रसंस्थानसंस्थिता अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पौरस्त्ये हूँ, पाचात्ये द्वे, दक्षिणे द्वे, उत्तरे द्वे, पौरस्त्याभ्यन्तरा कृष्णराजिः दक्षिणबाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा, दक्षिणाभ्यन्तरा कृष्णराजिः पश्चिमबाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा, पाथात्यागई हैं ? अर्थात् ये कृष्णराजियां कहां पर हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (उप्पि सणकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं, हिहिं भलोए कप्पे अरिहविमाणपत्थडे, एस्थ णं अक्खाडगसमचउरंससंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ) ये आठ कृष्णराजियां ऊपर में सनत्कुमार, माहेन्द्रकल्प में और नीचे में ब्रह्मलोककल्प में अरिष्टविमान के पाथडे में हैं। इनका आकार समचतुरस्र-चौकोर-अखाडे के समान है। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं-(पुरस्थिमेणं दो, पच्चस्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो, पुरथिम भतरा कण्हराई दाहिण-बाहिरं कण्हराई पुट्ठा, पच्चस्थिमऽभंतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराइं पुट्ठा, उत्तरमऽ भतरा कण्हराई पुरथिमयाहिरं कण्हराई पुट्ठा) दो कृष्णराजियां पूर्वदिशा में, दो कृष्णराजियां पश्चिमदिशा में, दो कृष्णराजियां दक्षिण दिशा में, और दो कृष्णराजियां उत्तर दिशा में हैं। इनमें जो पूर्व दिग्भाग के भीतर की कृष्णराजि है वह दक्षिणदिग्भाग के बाहिर की कृष्णराजि को छूती है। दक्षिणदिग्भाग के भीतर की जो कृष्णराजि है, वह पश्चिRt.11 भाई निया यां मावेशी छ ? (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (उपि सणकुमारमाहिंदाण कप्पाण', हिटुिं बभलोए कप्पे अरिदृविमाणपत्थडे, एत्थण अक्खाडग समचउरगसंठाणसंठियाओ अटु कण्हराईओ पण्णत्ताओ) તે આઠ કૃષ્ણરાજિઓ ઉપરની બાજુએ સનકુમાર અને મહેન્દ્ર દેવલોકમાં અને નીચે બ્રહ્મલોક કલ્પના અરિષ્ટ વિમાનના પાથડામાં (વિમાન પ્રસ્તટમાં) ते १२ सभयतुख-यतुष्ठ माना । छे. ( त जहा ) ते ॥ प्रमाणे यावदी छ-(पुरस्थिमेण दो, पञ्चस्थिमेण दो, दाहिणेण दो, उत्तरेण दो) બે કૃષ્ણરાજિઓ પૂર્વ દિશામાં, બે કૃષ્ણરાજિએ પશ્ચિમ દિશામાં, બે કૃષ્ણ यो प्रक्षिप मिi मने ये ४२ उत्तर शिम छ (पुरथिमऽ. म्भ'तरा कण्हराई दाहिण-बाहिर कण्हराई पुद्रा, पच्चत्थिमऽभतरा कण्हराई उत्तरवाहिर' कण्हराई पुढा, उत्तरमऽभतरा कण्हराई पुरथिममाहिर कण्हराई पुढा) तेमांना २ पूर्व हिमानी मनी ४२ छ, ते हyि દિગ્ગાગની બહારની કૃષ્ણરાજિને સ્પર્શે છે, દક્ષિણ દિક્ષાગની અંદરની જે भ १३६ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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