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-कल्प-स्तोत्रादि-सन्दोह ]
-[९] अचिस्सइ तयवत्थो जिणनाहो पणसयाइं वरिसाणं । तयणु धरिणिंदनिम्मिअसनिज्झो विइअसुरसारो ॥ ५५ ॥ सिरिअभयदेवमूरी दूरीकयदुहिअरोगसंघाओ। पयडं तित्थं काही अहीणमाहप्पदिप्पंतं ॥५६॥ कंतीपुरीइ भयवं पुणो गमिस्सइ तओ अ जलहिमि । बहुविहनयरेसु अ गडुवर' महिमाइ दिप्पंतो ॥५७ ॥ अह कोऽतीआणागयपडिमाठाणाण साहणसमत्थो । जइवि हु सो सहसमुहो हविज्ज रसणासयसहस्सो ॥ ५८॥ पावा-चंपाऽ-हावय-रेवय-संमेअ-विमलसेलेसु। कासी-नासिग-मिहिला-रायगिहि-प्पमुहतित्थेसु ॥ ५९ ॥ जत्ताइ पूअणेणं दाणेणं जं फलं हवइ जीवो । तं पासपडिमदंसणमित्तेणं पावए इत्थ ॥६०॥ मासक्खमणस्स फलं वंदणवुद्धीइ पाससामिस्स । छम्मासिअस्स पावइ नयणपहगयाइ पडिमाए ॥६१ ॥ निरवच्चो बहुतणओ धणहीणो धणयसंनिहो होइ । दोहग्गोऽवि हु सुहओ पहुदिट्ठीए जणो दिट्ठो ॥६२॥ मुक्खत्तं कुकलत्तं कुजाइजम्मो कुरुवदीणत्तं । अत्थभवे पुरिसाणं न हुंति पहुपडिमपणयाण ॥६३॥ अडसहितित्थजत्ताकए भमइ कह वि मोहिओ लोओ। तेहिं तोऽणंतगुणं फलमप्पिते जिणे पासे ॥६४॥
१ गडवगडुव, गरुयगरुय, वअगडव । २ धणसंनिहो ।