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करनी का फल दूसरे दिन जब उस भोजन का नशा उतरा तो ब्रामण परिवार को ब्राह्मण को ब्रह्मदत्त पर बहुत क्रोध आयाअपने दुराचरण पर बहुत लज्जा आई। ग्लानि से अपना-अपना
YYY मुँह छिपाकर सभी जंगल में इधर-उधर भाग गये।
इस दुष्ट राजा के दूषित अन्न
से मेरे समूचे परिवार की बुद्धि भ्रष्ट हो गई। इसने मुझे पतित और भ्रष्ट कर दिया। मैं
उसका बदला लूंगा।
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| प्रतिशोध की आग में जलते हुए ब्राह्मण ने एक दिन वन में एक गड़रिये को देखा। वह गिलोल से पत्थर के छोटे-छोटे कंकर फेंककर बड़ के हरे-हरे पत्ते नीचे गिरा-गिराकर अपनी बकरियों को चरा रहा था। गड़रिये की अचूक निशाने बानी देखकर ब्रामण सोचने लगा
इस गड़रिये द्वारा मैं ब्रह्मदत्त से अपने पैर का बदला ले सकता हूँ। AM
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उसने गड़रिये को धन का लालच देते हुए कहादेख, छत्र-चमरधारी जो व्यक्ति हाथी की सवारी पर निकले उसकी दोनों आँखें
एक साथ फोड़ देना।
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