SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करनी का फल चित्त मुनि ने कहा भ्रात ! आपका राजन् ! तुम यदि इन भोगों का त्याग नहीं कथन सत्य है, कर सकते हो तो कम से कम अच्छे कर्म तो परन्तु फिर भी मैं करो, जिससे तुम अगले जन्म में नारकीय यह सुख-वैभव छोड़ दुःखों की पीड़ा से बच सकोगे। । नहीं सकता 000 राजन् ! इतना याद रखना ! अच्छे कर्मों का अच्छा और बुरेकर्मों का बुरा फल मिलता है। संसार का यह अटल नियम है यह कहकर चित्त मुनि वहाँ से उठकर चले गये। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती लौटकर अपने महलों में आ गया और राजसी ऐश्वर्य और भोग विलास में इब गया। / R
SR No.006282
Book TitleKarni Ka Fal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy