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करनी का फल
दोनों हरिण मरकर गंगा नदी के किनारे हंस बनें। हंसों का सुन्दर जोड़ा सरोवर में क्रीड़ा करता रहता था।
शिकारी ने बड़ी निर्दयता के साथ दोनों की गर्दन मरोड़ दी, छटपटाते हुए दोनों मर गये।
एक बार किसी शिकारी ने जाल फेंका। दोनों हंस उसके जाल में फँस गये।
दोनों हंसों की आत्मा ने वाराणसी में एक चाण्डाल के घर पुत्र रूप में जन्म लिया। बड़े का नाम चित्त और छोटे का नाम संभूत रखा गया ।
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एक बार वाराणसी के राजा ने उस चाण्डाल को आदेश दिया
यह पुरोहित नमुचि है हमारा घोर अपराधी । इसे श्मशान में ले जाकर मौत के घाट, उतार दो।