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करनी का फल तभी एक दिव्य चक्र अग्नि की चिनगारियाँ छोड़ता हुआ आकाश से नीचे उतर कर ब्रह्मदत्त की प्रदक्षिणा करने लगा।
ब्रह्मदत्त ने दायें हाथ की तर्जनी ऊपर उठाई। चक्र घूमता हुआ उस पर आकर बैठ गया।
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ब्रह्मदत्त ने चक्र को खूब मोर से घुमाकर दीर्घराज की तरफ फेंका।
घूमता हुआ चक्र दीर्घराज के मस्तक पर गिरा और दीर्घराज का धड़ कटकर भूमि पर लुढ़क पड़ा।
माओ! उस पाप व अनीतियों के उत्पत्ति केन्द्र
को काट डालो !
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