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________________ करनी का फल वरधनु और ब्रह्मदत्त पवनवेगी घोड़ों पर दौड़ते-दौड़ते वेष बदल कर छुपते छुपाते दोनों भूखे प्यासे कम्पिलपर से दूर निकल गये। बेतहाशा दौड़ने से घोड़ों तीन-दिन रात तक चलते रहे। ब्रह्मदत्त को प्यास के फेफडे फट गये और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया। लग गई। उसने कहातब दोनों रातभर पैदल ही उस बीहड़ जंगल में दौड़ते मित्र ! अब तो मुझसे कुमार, आप रहे। दिन निकलने पर वरधनु ने कहा एक कदम भी नहीं चला यहीं रुकिये। मैं पानी लेकर कुमार ! राजा के दुष्ट जा रहा है, प्यास से आता हूँ सैनिक अवश्य हमारा पीछा गला सूख रहा है। करेंगे, इसलिए वेष बदल लेना चहिए। 88.s Boy ब्रह्मदत्त को वहीं बैठाकर वरधनु पानी की खोज में चला गया। पानी की खोज में इधर-उधर घूमते घरधनु को दीर्घराज के सैनिकों ने आकर घेर लिया। सैनिकों ने उसे पकड़कर खूब पीटा वरधनु जोर से चिल्लाने लगा कुमार ! भाग जाओ। इन दुष्ट सैनिकों से अपने को 4 बचाओ। बताओ कुमार मुझे नहीं पता. मैं कहाँ है? भी कुमार को खोज रहा हूँ। ANN Ofo.D. C
SR No.006282
Book TitleKarni Ka Fal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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