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देवदत्ता
७. जो व्यक्ति संतान को प्राप्त करके भी उसे सुसंस्कार नहीं देते वे निश्चित
ही अपने कर्तव्य से च्युत होते हैं। ८. माता ने उसे गृहकार्य में बहुत कुशल बनाया । क्योंकि गृहकार्य ही
स्त्रियों का प्रमुख कार्य है। ९ गृहकार्यों में दक्ष स्त्री ही ससुरालय में आदर पाती है और सबकी प्रिय
होती है । अन्यथा वह तिरस्कार पाती है । १०. शनैः शनैः जब देवदत्ता तरुण हुई तब उसका रूप द्वितीया के चन्द्रमा - की तरह बढने लगा।
११. एक बार वह छत के ऊपर सहेलियों के साथ सोने की गेंद से खेल रही
थी।
१२-१३-१४. उसी समय वहां का राजा वैश्रमणदत्त अश्व क्रीडा के लिए
जाता हुआ अनुचरों के साथ उधर ले निकला। अकस्मात् सखियों के साथ क्रीडा करती हुई देवदत्ता पर उसकी दृष्टि पड़ी। वह उसके सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गया।
१५-१६-१७. उसने अपने अनुचरों से पूछा-यह कौन है ? और किसकी
पुत्री है ? राजा का प्रश्न सुनकर दत्त गाथापति के परिवार से परिचित एक अनुचर ने कहा- यह कन्या हमारे नगर के लब्धप्रतिष्ठ और धनीश्वर दत्त गाथापति की पुत्री है। इसका नाम देवदत्ता है ।