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ललियंगचरियं
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६८. इस प्रकार ललितांगकुमार के वचन को सुनकर मंत्री के मन में विस्मय
हुआ। तब उसने राजा से पूछा-इनके कुपित होने का क्या कारण
६९. राजा के पास क्रुद्ध होने का कारण जानकर विचक्षण मंत्री ललितांग
कुमार के पास आया और निर्भयतापूर्वक सत्य घटना बताई।
७०. यथार्थ स्थिति को जानकर ललितांगकुमार का क्रोध उसी प्रकार नष्ट
हो गया जिस प्रकार सूर्य के आने पर अन्धकार ।
७१. जब राजा को मालूम हुआ कि सज्जन ने मुझे भ्रांत बना दिया था तब
वह हृदय में बहुत पश्चाताप करता हुआ राजा ललितांगकुमार के पास
आया। ७२. उसके पैरों में पड़कर उसने क्षमा मांगी और गद्गद् मन से बोलने
लगा-तुम मेरे अपराध को क्षमा करना । ७३. इस प्रकार उनका संदेह दूर हो गया और परस्पर प्रेम उत्पन्न हुआ।
मनुष्य प्रायः संशय से निश्चित ही दूर चला जाता है। ७४. जामाता के पराक्रम को देखकर उसके मन में बहुत प्रसन्नता हुई। वह
उसे प्रचुर स्नेह और सत्कार देता हुआ सुखपूर्वक राज्य करने लगा।
७५. राज्य करते हुए एक बार राजा के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसने
जामाता को राज्य देकर कर्मों को नष्ट करने वाली दीक्षा ग्रहण की।
७६. राज्य प्राप्त करके राजा ललितांग अपने माता-पिता को धार्मिक बनाना
चाहता है। संसार में ऐसे पुत्र विरले हैं जो माता-पिता को धार्मिक
बनाने की चेष्टा करते हैं। ७७. धन से माता-पिता की सेवा करने वाले संसार में बहुत पुत्र हैं। पर
जो उनकी धार्मिक सेवा करते हैं ऐसे पुत्र संसार में विरले हैं। ७८. पुष्पावती तथा मनुष्यों के साथ वह पिता की नगरी में आया। एक ___ आदमी को भेजकर उसने पिता को अपने आगमन की सूचना दी। ७९. पुत्र के आगमन को सुनकर राजा मन में बहुत हर्षित हुआ । वह उसका
स्वागत करने के लिए अनेक मनुष्यों के साथ सम्मुख आया।