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ललियंगचरियं
३२. इसकी जाति तुच्छ है । फिर भी इसने यह विद्या कहां से प्राप्त की,
निश्चय ही आपके मन में ऐसा संशय हो सकता है । अतः सावधानी से मेरी बात सुनें।
३३. एक बार मार्ग में पुण्योदय से कोई सिद्धिप्राप्त मनुष्य इसे मिल गया।
इसने उससे विस्मयकारी विद्या मांगी, जिससे धन प्राप्त किया जा सके ।
३४. तब उसने इस पर दया करके यह विद्या प्रदान की। मनुष्य महान्
व्यक्तियों की कृपा से संसार में सदा क्या-क्या नहीं प्राप्त कर सकता
३५. विद्या के प्रभाव से उसने अभी तुम्हारी पुत्री के नेत्र ठीक कर दिये ।
विद्या के प्रभाव से मनुष्य संसार में दुष्कर कार्य करने में समर्थ हो
सकते हैं। ३६. उसके नेत्र ठीक होने पर आपने शीघ्र ही उसके साथ पुत्री का विवाह
कर दिया। क्योंकि महान व्यक्ति दिये हुए वचन का पालन करते हैं । ३७. राजन् ! एक बार परिवार के साथ मेरा झगड़ा हो गया। तब मैं रुष्ट
होकर सबको छोड़ घूमता हुआ यहां आ गया। ३८. मुझे देखकर वह तत्काल पहचान गया। यह मेरी जाति के विषय में
राजा को कुछ न कह दे यह सोचकर उसने मुझे अपने पास रख लिया । ३९. इस प्रकार राजा को निवेदन कर सज्जन अपने स्थान पर आ गया।
उसके वचन को सुनकर राजा मन में क्रुद्ध होकर सोचने लगा-- ४०. कहां तो लोक में प्रसिद्ध श्रेष्ठ और पवित्र मेरा कुल है और कहां सबके
द्वारा निन्दित मेरे जामाता का नीच कुल । ४१. कुल से श्रेष्ठ नीच मनुष्य संसार में सदा पूजा को प्राप्त करते हैं। कुल
से हीन सज्जन मनुष्य भी निंदा को प्राप्त करते हैं । ४२. अतः सुकुल की महत्ता गाई गई है। कुलीन व्यक्ति बुरा कार्य नहीं
करते । वे कष्ट पाकर भी कुल की मर्यादा को नहीं छोड़ते ।