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________________ ललियंगचरियं २१. यदि मैं उसमें सफल हो जाऊंगा तो बाद में राजकुमारी की चिकित्सा करूंगा । महान् व्यक्ति सदा दूसरे के दुःख को दूर करने में तत्पर रहते हैं । ३९ २२. ऐसा सोचकर जब कुमार ने अपना हाथ फैलाया तो उसके हाथ में तब एक लता और अनेक बीट आ गई । २३. लता के रस में बीटों को मिलाकर जब उसने लेप किया तब पुण्योदय से उसकी आंखें पुनः आ गईं । २४. धर्म का प्रभाव देखकर उसकी धर्म के प्रति श्रद्धा बढ़ गई । संसार में मनुष्यों की धर्म की आराधना कभी व्यर्थ नहीं होती । २५. जो व्यक्ति परीक्षा काल में शीघ्र श्रद्धाहीन होकर अपने धर्म को छोड़ देते हैं वे कभी प्रचुर सुख को प्राप्त नहीं करते । २६. कुमार कुछ लता और बीट लेकर लिए चंपापुरी की ओर चला गया। राजकुमारी की चिकित्सा करने के क्योंकि वह परोपकारी था । २७. वह चंपापुरी में जाकर शीघ्र राजमहल में आया । उसने द्वारपाल को नम्रतापूर्वक कहा २८. राजा से जाकर कहो कि मैं श्रीवास नगर से राजकुमारी की चिकित्सा करने के लिए आया हूं । मेरे आगमन का अन्य कोई प्रयोजन नहीं है । २९. उसकी यह बात सुनकर द्वारपाल ने राजा के पास जाकर उसके कथनानुसार सब निवेदन कर दिया । ३०. द्वारपाल के मुख से किसी वैद्य के आगमन की बात सुनकर उसके ( राजा के ) खिन्न हृदय में तब बहुत आनन्द उत्पन्न हुआ । ३१. जिस प्रकार भूखों के लिए अन्न की, प्यासों के लिए पानी की बात आनन्द का कारण बनती है उसी प्रकार राजा के लिए भी यह बात आनंद का हेतु बनी । ३२ उसने द्वारपाल से कहा- तुम विलम्ब मत करो । उस महानुभाव को यहां ले आओ जो करुणा करके आया है ।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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