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तेरापंथ धर्मसंघ में साहित्य की । स्रोतस्विनी अनेक धाराओं में प्रवहमान | | रही है। राजस्थानी भाषा में साहित्य | | सृजन की परम्परा आचार्य भिक्षु के |
समय से ही बहुत समृद्ध रही है। हिन्दी ! | साहित्य का सृजन भी प्रगति पर है।
संस्कृत साहित्य की धारा सूखी नहीं। | है। गद्य-पद्य दोनों विधाओं में साहित्य | | लिखा गया है, पर वह सीमित है।। प्राकृत भाषा हमारे यहां अध्ययनस्वाध्याय की दृष्टि से प्रमुख भाषा के रूप में स्वीकृत है। किन्तु इसमें बोलने । | और लिखने की गति मन्द रही है। ।
प्राकृत भाषा पढ़ना एक बात है,। उसमें लिखना सरल काम नहीं है । पद्य लिखना तो और भी कठिन है। शिष्य
मुनि विमल ने संस्कृत के साथ प्राकृत । | का भी अच्छा अध्ययन किया।। | ‘पाइयपडिबिंबो' में ललियंगचरियं आदि | | तीन पद्यात्मक कृतियों का संग्रह है। प्राकृत सीखने वाले विद्यार्थियों और प्राकृत रसिक पाठकों के लिए इसकी। | उपयोगित निर्विवाद है।
-गणाधिपति तुलसी |