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सोलह
पदसाधन दिया गया है इसलिए ये एक महत्त्वपूर्ण अवश्यपठनीय प्राकृत ग्रन्थ
__ मैं आशा करता हूं कि ये ग्रन्थ पढकर शिक्षार्थी बहुत लाभान्वित होंगे। मैं यह भी आशा करता हूं कि मुनि विमलकुमारजी भविष्य में इसी तरह काव्य ग्रन्थ लिखकर प्राकृत साहित्य को समृद्ध करेगें।
शुभम् अस्तु ।
दिनांक २५ मार्च १९९६ कलकत्ता विश्वविद्यालय'
डॉ० सत्यरंजनबनर्जी प्रोफेसर, कलकत्ता विश्वविद्यालय