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________________ पसत्थी १३९ ११. दीक्षा देकर उन्होंने मुझे मुनि श्री दुलहराज जी के पास रखा। उन मुनिराज ने मेरे में सद्संस्कार भरे और मेरे जीवन का विकास किया । १२. वहां प्रसन्नतापूर्वक रहते हुए मुझे मुनि श्री नथमल जी (आचार्य ___ महाप्रज्ञ) का सान्निध्य प्राप्त हुआ। जो प्राज्ञ, विशारद, पूज्य तथा गुरुदेव के विश्वासपात्र हैं। १३. उन दोनों का मेरे ऊपर बहुत उपकार है। उन्होंने मुझे अपना स्नेह और शिक्षा देकर मेरा पथ प्रशस्त किया। १४. उनके पास रहते हुए मुझे गुरुदेव का सान्निध्य तथा कृपा प्राप्त हुई। भाग्य विना कोई भी गुरुकुल-वास को प्राप्त नहीं कर सकता । १५. मैंने जो कुछ भी विकास किया है उसमें मेरा कुछ भी सामर्थ्य नहीं है। सब गुरुदेव की कृपा से हुआ है, क्योंकि गुरु की कृपा से गूंगा भी बोल सकता है। १६. गुरुदेव की कृपा पाकर मेरा मन गद्गद् है । उनकी प्रेरणा पाकर मैंने प्राकृत भाषा का अध्ययन किया। १७ उस प्राकृत भाषा में मैंने काव्यों की रचना की है । यह सब गुरुदेव ___की शक्ति है । मैं निमित्तमात्र हूं। १८-१९. इन काव्यों की रचना विभिन्न ग्रामों में, विभिन्न समय में हुई है। ये रचनायें मनुष्यों को विविध शिक्षाएं देती हैं। मेरी कृतियों को पढ़कर यदि इस भाषा (प्राकृत) के अध्येता कुछ लाभ प्राप्त करेंगे तो निश्चित ही मेरा श्रम सार्थक होगा।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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