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________________ सुबाहुचरियं १३१ २२-२३. माता की इस वाणी को सुनकर सुबाहुकुमार ने इस प्रकार कहा धन विनाश को प्राप्त हो सकता है। राजा और चोर उसका हरण कर सकते हैं । अग्नि धन को जला सकती है। दायक उसे ले सकते हैं । धन की इस स्थिति को देखकर तुम मुझे दीक्षा की शीघ्र आज्ञा दो। २४. सुबाहुकुमार की इस वाणी को सुनकर माता ने पुनः इस प्रकार कहा___ साधु-जीवन सरल नहीं है। वह दुष्कर-दुष्कर है। २५. साधु औद्देसिक, क्रीतकृत, आधाकर्म भोजन को ग्रहण नहीं करते हैं। यह श्रमणों का आचार है, जो संसार में दुष्कर है । २६. साधु के जीवन में बावीस परीषह आते हैं। धीर, वीर ही उसे सहन ___ करने में समर्थ हैं, अन्य कोई नहीं। २७. तुम उन्हें सहन करने में समर्थ नहीं हो, अत: दीक्षा ग्रहण मत करो। माता की इस वाणी को सुनकर सुबाहुकुमार इस प्रकार बोला२८. यह श्रामण्य कायरों के लिए महादुष्कर कार्य है । निश्चित मन वालों के लिए संसार में क्या दुष्कर है ? २९. उसके दीक्षा ग्रहण के विचार को जानकर उसकी सब पत्नियां उसको समझाने के लिए शीघ्र चेष्टा करती हैं। वे अपने प्रिय को इस प्रकार कहती हैं३०. जैसे संसार में चातकों का आधार मेघ है उसी प्रकार अभी तुम हम सबके आधारभूत हो। ३१-३२. जल के बिना मछलियों की जो दशा होती है वही दशा तुम्हारे बिना हमारी होगी। अतः हे प्रिय ! तुम हमें मत छोड़ो। उनके इस प्रकार के वचन को सुनकर सुबाहुकुमार ने उनको कहा-इस संसार में कौन किसका आधारभूत है ? सभी मनुष्य स्वार्थपरायण हैं। स्वार्थ के बिना कोई किसी को नहीं पूछता है ।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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