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तेरह
अच्छी पकड़ है। काव्य सुधा अवर्णनीय है। मैं केवल यही कह सकता हूं हूं विमलमुनि की प्रतिभा असाधारण है । काव्य रचना भी अपूर्व है।
जैन मुनि लोग कहानियां रचने में बहुत ही पारदर्शी हैं । महावीर के समय से (छट्ठी शताब्दी ईसापूर्व) यह धारा प्रवाहित हो रही है । जैन आगम ग्रन्थों में उनकी जो टीका है उसमें और प्रबंधादिजातीयकोष ग्रन्थ में ऐसा बहुत बौद्ध साहित्य और कहानियां हैं जिसे पढ़कर हम लोगों को बहुत हर्ष होता है । केवल जैनियों में नहीं अपितु संस्कृत और बौद्ध साहित्य में भी बहुत आख्यान मंजरी है। विमलमुनि के इन छह आख्यान पढने से मालूम होता है कि यही धारा प्राचीन काल से अभी तक चल रही है । इसलिए संक्षेप में इसका परिचय देना प्रासंगिक मालम होता है।
संस्कृत साहित्य तथा प्राचीन भारतीय साहित्य कथानक मंजरी से समृद्ध है । यथा-पूरुरवाउर्वर्शी, यययमी, विश्वमित्र-सत्द्रु-विपाशा आदि बहुत कहानियों से हम परिचित हैं । विविध कथा प्रसंगों में वैदिक ब्राह्मण साहित्य में भी बहुत कहानियां हैं। किंपुरुष, वित्रासुर, शुनः शेफ इत्यादि आख्यायिकाओं से हम लोग सुपरिचित हैं । शतपथ ब्राह्मण की मनुमत्स्यकथा विश्वप्रसिद्ध है । इसके अतिरिक्त रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रन्थों में भी छोटी-छोटी कहानियां हैं जो आज भी बहुत उपादेय हैं । मंधाता, यमाती, धुन्धुमार, नल, नहुष आदि कहानियां भारतीय साहित्य में अमर हैं । केवल संस्कृत साहित्य ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन साहित्य में भी कथानक मंजरी सुप्रसिद्ध है । पाली भाषा में जातक अथवा जातकट्ठकहा और बुद्ध संस्कृत में महावस्तु, ललित विस्तर, जातक माला, दिव्यावदान आदि ग्रन्थ आख्यान मंजरी से समृद्ध हैं।
__जैनियों में भी आख्यान मंजरी बहुत ही उपलब्ध है। जैन आगम ग्रन्थ में, उनकी जो टीका है उसमें, जैन धर्म को विशद करने के लिए बहुत कहानियों की अवतारणा की गई है। हर्मन याकोबी ने उत्तराध्ययन की टीकाओं में जो आख्यायिका है उसका संकलन करके प्रकाशित किया है। (Selected narratives in Maharastri Lipzig, 1886) इसका Meyor साहब ने Hindu Tales नाम करके English अनुवाद किया
ऊपर लिखित आख्यायिका केवल प्रासंगिक है अर्थात् धार्मिक विषय को स्पष्टीकरणार्थ आख्यायिका की अवतारणा की गई है। इसी प्रसंग में ये सब कहानियां रचित हुई हैं। किन्तु बाद में संस्कृत, प्राकृत और पाली भाषा में हिन्दु, जैन और बौद्धों ने बहुत ही कहानियों की रचना की है । पंचतंत्र अथवा हितोपदेश बहुत ही प्रसिद्ध हैं । ये दोनों तो विदेशी भाषाओं में अनुवादित भी हुए हैं। इसके अलावा शुकसप्तति, वेतालपंचविंशति, विक्रमचरित्र,