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देवदत्ता
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६२-६३. इसने पूर्वभव में भी ४९९ रानियों की ४९९ माताओं को मारा था
तथा इस भव में भी राजमाता को मार डाला । इस प्रकार दुष्कर्म करके वह प्रचुर वेदना भोग रही है ।
६४. मनुष्य जैसे कर्म करता है वह वैसे ही फल पाता है। इसमें संदेह नहीं
६५. मनुष्य दुष्कर्म करने में संसार में सदा स्वतंत्र है। लेकिन उनका फल
भोगने में वह परतंत्र है। ६६-६७. देवदत्ता के पूर्व भव का वर्णन सुनकर जिज्ञासुमनवाले गौतम स्वामी
ने भगवान् को पूछा-भंते ! यह कुकर्म करने वाली देवदत्ता यहां से मरकर कहां उत्पन्न होगी ?
६८-६९. गौतम स्वामी के इस प्रश्न को सुनकर भगवान् महावीर ने कहा
हे गौतम ! यह देवदत्ता यहां से मरकर प्रथम नरक में उत्पन्न होगी।
७०-७१ वहां की एक सागरोपम की स्थिति भोगकर, वहां से निकलकर
उसका जीव अनेक बार जन्म-मरण करता हुआ इस संसार में बार-बार भ्रमण करेगा।
७२. तत्पश्चात् दुष्कर्म के नाश होने पर तथा पुण्योदय से वह गंगापुर नगर
में किसी श्रेष्ठी के घर में उत्पन्न होगी। ७३. वहां साधुओं की संगति प्राप्त कर, धर्म सुनकर और वैराग्य पाकर वह
दीक्षा ग्रहण करेगी।
७४. प्रव्रज्या का अच्छी तरह से पालन कर वह समाधिपूर्वक मरकर प्रथम
देवलोक में उत्पन्न होगी।