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देवदत्ता
३६. इस प्रकार श्यामारानी को सांत्वना देकर राजा व्याकुल मन से राज्य
सभा में आया। ३७-३८. उसने कुछ कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा--तुम लोग नगर के
बाहर एक सुन्दर और अनेक खम्भों से युक्त कुटाकारशाला का शीघ्र ही निर्माण करवाओ-यह मेरी आज्ञा है।
३९. तुम लोग इस कार्य में विलंब मत करना। जब उसका निर्माण कार्य
पूर्ण हो जाए तब मुझे निवेदित कर देना। ४०. भूपति का निर्देश पाकर वे अपने स्थान पर आ गए और शीघ्र ही उसका
निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
४१. जब वह सुरम्य कुटाकारशाला बन गई तब उन्होंने तत्काल राजा को
इस प्रकार निवेदन किया४२. स्वामिन् ! आपके निर्देश से हमने अनेक खंभों से युक्त एक कुटाकार__ शाला बनवा दी है। ४३. उनकी इस वाणी को सुनकर राजा प्रसन्न हुआ। उसने उनको बहुत धन
देकर तत्काल विसर्जित कर दिया।
४४-४५. तत्पश्चात् राजा ने एक दूत को बुलाकर इस प्रकार कहा- तुम लोग
श्यामारानी के अतिरिक्त अन्य रानियों की माताओं के पास जाओ और कहो-राजा सिंहसेन ने तुम लोगों को शीघ्र बुलाया है। अतः वहां . आओ। .
४६. दूत के मुख से इस प्रकार की बात सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुई तथा
सज्जित होकर शीघ्र ही वहां आई। ४७. राजा सिंहसेन ने उनका बहुत स्वागत किया तथा रहने के लिए कूटा
कारशाला दी। . ४८. राजा ने वहां पर स्वादिष्ट भोजन, सुन्दर वस्त्र और आभूषण भेजे ।
राजा से इस प्रकार सम्मान पाकर वे प्रसन्न हुई।