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देवदत्ता
६७-६८. भंते ! जब मैं भिक्षा के लिए नगर में गया तब राजमार्ग पर एक
स्त्री को देखा जिसे राजपुरुष दंड दे रहे थे। वह मन में बहुत दुःख पा रही थी। भंते ! वह स्त्री कौन है ? उसने पूर्व भव में क्या कार्य किया है ? जो इस प्रकार वेदना का अनुभव कर रही है। क्योंकि कर्म कर्ता
को नहीं छोड़ते। ६९. गौतम स्वामी की वाणी को सुनकर भगवान् महावीर ने देवदत्ता के पूर्व भव का वर्णन किया, जो मनुष्यों के हृदय को कंपित करता है ।
चतुर्थ सर्ग समाप्त