SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 759
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३४ नव पदार्थ २. तीन काल रा सुख देवां तणा रे, ते सुख इधका घणां अथाग रे। ते सगलाइ सुख एकण सिध ने रे, तुले नावें अनंतमें भाग रे।। ३. संसार नां सुख तो छे पुद्गल तणा रे, ते तो सुख निश्चें रोगीला जांण रे। ते करमां बस गमता लागें जीव ने रे त्यां सुखां री बुधिवंत करो पिछांण रे।। ४. पांव रोगीलो हवें , तेहनें रे, अतंत मीठी लागें , खाज रे। एहवा सुख रोगीला छे पुन तणा रे, तिण सूं कदेय न सीझे आतम काज रे।। ५. एहवा सुखां सूं जीव राजी हुवें रे, तिणरे लागें 2 पाप करम रा पूर रे। पछे दुःख भोगवे , नरक निगोद में रे, मुगति सुखां सूं पडीयो दूर रे।। ६. छूटा जनम मरण दावानल तेह थी रे, ते तो छे मोष सिध भगवंत रे। त्यां आठोंइ करमां ने अलगा कीयां रे, जब आठोंइ गुण नीफ्नां अनंत रे।। ७. ते मोख सिध भगवंत तो इहां हिज हुआ रे, पछे एक समा में उंचा गया छे थेट रे। सिध रहिवा नो खेतर छ तिहां जाए रह्या रे, अलोक सूं जाए अड्या नेट रे।। ८. अनंतो ग्यांन ने दरसण तेहनों रे, वले आतमीक सुख अनंतो जांण रे। ___षायक समकत छे सिध वीतराग तेहनें रे, वले अवगाहणा अटल छे निरवांण रे।। ६. अमूरतीपणो त्यांरो परगट हूवो रे, हलको भारी न लांगें मूल लिगार रे। तिण सूं अगुरुलघु ने अमूरती कह्यां रे, ए पिण गुण त्यांभे श्रीकार रे।। १०. अंतराय करम सुं तो रहीत छ रे, त्यारे पुद्गल सुख चाहीजे नांय रे। ते निज गुण सुखां मांहें झिले रह्यां रे, कांइ उणारत रही न दीसें कांय रे।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy