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________________ : ८ : बंध पदार्थ दोहा , १. आठवाँ पदार्थ बंध है। इसने जीव को बांध रखा है। जिसने बंध पदार्थ को नहीं पहचाना, वह मोहांध है। बंध पदार्थ और उसका स्वरूप (दो०१-३) २. बंध से जीव दबा रहता है (उसके सर्व प्रदेश कर्मों से आच्छादित रहते हैं)। उसका कोई भी अंश जरा भी खुला नहीं रहता। बंध की प्रबलता के कारण जीव का जरा भी वश नहीं चलता। ३. जीव तालाबरूप है। तालाब में पड़े हुए-स्थित जलरूप बंध है। पुण्य-पाप को निकलते हुए जलरूप समझना चाहिए। इस प्रकार बंध को पहचान लो। कर्म-प्रवेश के मार्ग : जीव-प्रदेश ४. प्रत्येक जीव द्रव्य के असंख्यात प्रदेश होते हैं। सर्व प्रदेश आश्रव-द्वार हैं-(कर्म-ग्रहण करने के मार्ग हैं)। सर्व प्रदेशों से कर्मों का प्रवेश होता है। बंध के हेतु ५. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग-ये पाँच प्रधान आश्रव हैं। इनमें योग आश्रव के पन्द्रह भेदों को जोड़ देने से कुल बीस आस्रव होते हैं। ६. जल के आने के नाले की तरह आस्रव कर्मों के आने के नाले हैं। इन नालों को रोक देने पर संवर होता है जिस से कर्मरूपी जल का आना रुक जाता है। और नया बंध नहीं होता। बंध से मुक्त होने का उपक्रम (दो०६-८)
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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