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________________ `निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी ५ इस वार्त्तालाप से भी तीन ही भेद फलित होते हैं। नीचे तीनों प्रकार के अवमोदरिका तपों का स्वरूप संक्षेप में दिया जा रहा है : १. उपकरण अवमोदरिका : ६३५ यह तीन प्रकार का होता है' : (क) एक वस्त्र से अधिक का उपयोग न करना । (ख) एक पात्र से अधिक का उपयोग न करना । (ग) चियत्तोपकरणस्वदनता । संयमीसम्मत उपकरण का धारण करना अथवा मलीन वस्त्र, उपकरण - उपधि आदि में भी अप्रीतिभाव न करना । साधु आगमविहित वस्त्र पात्र रख सकता है । विध्यानुसार रखे हुए वस्त्र -पात्रों से साधु असंयमी नहीं होता। अधिक रखनेवाला अथवा यत्नापूर्वक व्यवहार नहीं करनेवाला साधु असंयमी होता है : जं वट्टइ उवगारे, उवकरणं तं सि होइ उवगरणं । अइरेगं अहिगरणं, अजओ अजयं परिहरंतो' । । साधारणतः साधु के लिए अधिक वस्त्रादिक का अग्रहण ही अवमोदरिका तप है । जो साधु विहित वस्त्र पात्र - उपधि को भी न्यून करता है, वह अवमोदरिका तप करता है। मलीन वस्त्र पात्रों में अप्रीतिभाव का होना उपकरण मूर्छा है। इस मूर्छा का घटाना-मिटाना उपकरण अवमोदरिका है। २. भक्तपान अवमोदरिका : द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्याय की अपेक्षा में यह तप पाँच प्रकार का बताया गया है । १. ( क ) ठाणाङ्ग ३.३.१८२ : उवगरणोमोदरिता तिविहा पं० तं०- एगे वत्थे एगें पाते चियत्तोवहिसातिज्जणता (ख) औपपातिक सम० ३० (ग) भगवती २५.७ २. ठाणाङ्ग ३.३.१८२ की टीका में उद्धृत ३. उत्त० ३०.१४ : ओमोयरणं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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