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________________ ६३० नव पदार्थ जिसमें उद्वर्तनादि आवश्यक शरीरिक क्रियाओं का विचार हो-उनके लिए अवकाश हो-वे की जा सकती हों, उसे सविचार मारणांतिक अनशन कहते हैं। जिसमें किसी भी प्रकार की शारीरिक क्रियाओं का विचार न हो-उनके लिए अवकाश न हो-वे न की जा सकती हों, वह अविचार मारणांतिक अनशन कहलाता है। औपपातिक में यावत्कथिक-मारणांतिक अनशन दो प्रकार का कहा गया है-(१) पादोपगमन और (२) भक्तप्रत्याख्यान । समवायाग सम० १७ में इस अनशन के तीन भेद बताये हैं-(१) पादोपगमन, (२) इंगिनी और (३) भक्तप्रत्याख्यान । इन तीनों भेदों के लक्षण इस प्रकार हैं : (१) पादोपगमन : चारों प्रकार के आहार का जीवनपर्यन्त के लिए त्याग कर किसी खास संस्थान में स्थित हो यावज्जीवनं पतित-पादप की तरह निश्चल रहकर जो किया जाय, उसे पादोपगमन अनशन कहते हैं। पादप सम-विषम जैसी भी भूमि पर जिस रूप में गिर पड़ता है वहाँ उसी रूप में निष्कंप पड़ा रहता है। गिरे हुए पादप की उपमा से शरीर की सारी क्रियाओं को छोड़ कर एक स्थान पर किसी खास मुद्रा में स्थित हो निष्कंप रह जो अनशन किया जाय, वह पादोपगमन है। कहा है : समविसमम्मि य पडिओ, अच्छइ सो पायवो व्व निक्कंपो। चलणं परप्पओगा, नवर दुमस्सेव तस्स भवे।। (२) इंगिनीमरण : ___ इंगित देश में स्वयं चार प्रकार के आहार का त्याग करे और उद्वर्तन-मर्दन वगैरह खुद करे पर दूसरों से न करावे, वह इंगिनीमरण कहलाता है। इस मरण में चार प्रकार के आहार का त्याग कर इंगित-नियत देश के अन्दर रहना पड़ता है और चेष्टाएँ भी इसी नियत देश-क्षेत्र में ही की जा सकती हैं। इसके लक्षण को बतलानेवाली निम्न गाथा स्मरण रखने जैसी है : इंगियदेसंमि सयं चउविहाहारचायनिष्फन्नं । उन्नत्तणाइजुत्तं नऽण्णेण उ इंगिणीमरणं ।। इसे इंगितमरण भी कहा जाता है। १. उत्त० ३०.१३ की टीका में उद्धृत २. ठाणाङ्ग २.४.१०२ की टीका में उद्धृत
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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