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________________ ६१६ नव पदार्थ इहलोक रे अर्थ करे नहीं, न करे खावा पीवा रे हेत जी। लोभ लालच हेते करे नहीं, परलोक हेते न करे तेथ जी।। संवर निरजरा रे हेते करे, और वंछा नहिं काय जी। इण परिणाम पोसो करे, तो भाव थकी सुध थाय थी।। कोई लाडूआं साटे पोसो करे, कोई परिग्रह लेवा करे ताम जी। कोई और द्रव्य लेवा पोसो करे, ते कहिवा रो पोसो छे नाम जी।। ते तो अरथी छै एकंत पेट रो, ते मजूरीया तणी छै पांत जी।। त्यांरा जीव रो कार्य सझे नहीं, उलटी घाली गला मांहें रांत जी ।। विरक्त होय काम भोग थी, त्यांने त्याग्या छै सुध परिणाम जी। मोख रे.हेत पोसो करे, ते असल पोसो कह्यो तांम जी ।। इण विध पोसा ने कीजीये, तो सीझसी आतम काज जी। कर्म रुकसी ने वले टूटसी, इम भाषीयो श्री जिणराज जी' || उन्होंने अन्यत्र लिखा है___ लाडूआ साटें पोषा करें, तिणमें जिण भाष्यों नहीं धर्म जी। ते तो इहलोक रे अरथे करें, तिणरो मूरख न जाणे मर्म जी ।। सामायिक के सम्बन्ध में स्वामीजी के निम्न उद्गार मिलते हैं भाव थी राग द्वेष रहीत छै, तब संवर निरजरा गुण थाय जी। इण रीते समाइ ओलख करे, जब भावे समाइ हुवे ताय जी ।। अतिथिसंविभाग व्रत के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है जो उ दांन दे मुगत रे कारणे, और वंछा नहिं काय । जब नीपजें व्रत बारमों, इम भाष्यो जिणराय ।। ३।। पुन्य री बंछा कर देवे नहिं, समदिष्टी साधां ने दांन जी। देवे संवर निरजरा कारणे, पुन्य तो सहिजां बंधे आसान जी ।। १. भिक्षु-प्रन्थरत्नाकर (प्र० ख०) श्रावक ना बारे व्रत ढा० १२.५, १६-२२, २८-२६ २. वही : अणुकम्पा री चौपई ढा० १२.४७ ३. वही : श्रावक ना बारे व्रत ढा० १०.३४ ४. वही : वही १२.३८
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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