SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टिप्पणियाँ १. निर्जरा सातवाँ पदार्थ है (दो० १) : तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार, पुण्य और पाप को यथास्थान रखने पर, निर्जरा पदार्थ का स्थान आठवाँ होता है। उत्तराध्ययन में भी इसका क्रम आठवाँ है' । अन्य आगमों में इसका स्थान सातवाँ है । दिगम्बर ग्रन्थों में इसका क्रम प्रायः सातवाँ है। आगम में इसकी गिनती सद्भाव पदार्थ और तथ्यभावों में की गई है। भगवान महावीर ने कहा है-“ऐसी संज्ञा मत करो कि वेदना और निर्जरा नहीं है, पर ऐसी संज्ञा करो कि वेदना और निर्जरा है।" द्विपदावतारों में इसे वेदना का प्रतिपक्षी पदार्थ कहा है। उमास्वाति ने 'वेदना' को 'निर्जरा' का पर्यायवाची बतलाया है। पर आगम इसे निर्जरा का प्रतिद्वन्दी तत्त्व बतलाते हैं । वेदना का अर्थ है-कर्म-भोग, निर्जरा का अर्थ है-कर्मों को दूर करना। १. तत्त्वा० १.४ (देखिए पृ० १५१ पाद-टिप्पणी १) २. उत्त० २८.१४ (पृ० २५ पर उद्धृत) ३. ठाणाङ्ग ६.३.६६५ (पृ० २२ पाद-टि० १ में उद्धृत) ४. (क) गोम्मटसार जीवकांड ६२१ : णव य पदत्था जीवाजीवा तांण च पुण्णपावदुगं। आसवसंवरणिज्जरबंधा मोक्खो य होतित्ति ।। (ख) पञ्चास्तिकाय २.१०८ (पृ० १५० पाद-टि० २ में उद्धृत) ५. (क) उत्त० २८.१४ (पृ० २५ पर उद्धृत) (ख) ठाणाङ्ग ६.३.६६५ (पृ० २२ पाद-टि० १ में उद्धृत) ६. सुयगडं २.५.१८ : नत्थि वेयणा निज्जरा वा नेवं सन्नं निवेसए। अत्थि वेयणा निज्जरा वा एवं सन्नं निवेसए।। ७. ठाणाङ्ग २.५७ : जदत्थि णं लोगे तं सव्वं दुपओआरं, तंजहावेयणा चेव निज्जरा चेव ८. तत्त्वा० ६.७ भाष्य : निर्जरा वेदना विपाक इत्यनर्थान्तरम् ६. भगवती ६.१
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy