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________________ : ७ : निरजरा पदारथ (ढाल १) दुहा १. निरजरा पदार्थ सातमों, ते तो उजल वसत अनूप । ते निज गुण जीव चेतन तणो, ते सुणजो धर चूंप ।। ढाल : १ (धन्य धन्य जंबू स्वाम नें-ए देशी) १. आठ करम जीव रे अनाद रा, त्यांरी उतपत आश्रव दुवार हो। मुणिंद* ते उदे थइ नें पछे निरजरे, वले उपजें निरंतर लार हो।। मुणिंद* निरजरा पदार्थ ओलखो* || २. दरब जीव छ तेहनें, असंख्याता परदेस हो। सारां परदेसा आश्रव दुवार छे, सारां परदेसां करम परवेस हो।। ३. एक एक परदेस तेहनें, समें समें करम लांगत हो। ते परदेस एकीका करम नां, समें समें लागे अनंत हो ।। ४. ते करम उदे थइ जीव रे, समें समें अनंता झड़ जाय हो। भरीया नींगल जं करम मिटें नहीं, करम मिटवा रो न जाणे उपाय हो।। * चिन्हित शब्द और आँकड़ी इन्हीं स्थलों पर आगे की गाथाओं में भी पढ़ने चाहिए।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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