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________________ संवर पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी २ ५०६ (२) कर्मपुद्गलों के आदान-ग्रहण का उच्छेन करना दव्य संवर है और संसार की हेतु क्रियाओं का त्याग भाव संवर है। श्री हेमचन्द्र सूरि कृत यह परिभाषा आचार्य पूज्यपाद कृत परिभाषा पर आधारित है। (३) जो चैतन्य परिणाम कर्मों के आस्रव के निरोध में हेतु होता है वही भाव संवर है और द्रव्यास्रव के अवरोध में जो हेतु है वह द्रव्य संवर है। (४) मोह, राग और द्वेष परिणामों का निरोध भाव संवर है। उस भाव संवर के निमित्त से योगद्वारों से शुभाशुभ कर्म-वर्गणाओं का निरोध होना द्रव्य संवर है। (५) शुभ-अशुभ कर्मों के निरोध से समर्थ शुद्धोपयोग भाव संवर है; भाव संवर के आधार से नए कर्मों का निरोध द्रव्य संवर है | पाठक देखेंगे कि उपर्युक्त परिभाषाओं में वास्तव में अन्तिम चार ही संवर पदार्थ के दो भेदों का प्रतिपादन कर द्रव्य संवर की परिभाषाएँ देती हैं। श्री अभयदेव ने वस्तुतः संवर पदार्थ के दो भेद नहीं बतलाये हैं पर संवर के द्रव्यसंवर और भावसंवर ऐसे दो भेद कर द्रव्यसंवर की उपमा द्वारा भावसंवर को समझाया है। जैसे द्रव्य अग्नि के स्वभाव द्वारा भाव अग्नि-क्रोधादि को समझाया जा सकता है वैसे ही नौका के स्थूल दृष्टान्त द्वारा उन्होंने भावसंवर को समझाया है। उन्होंने नौका के लौकिक दृष्टान्त द्वारा आध्यात्मिक १. नवतत्त्वसहित्यसंग्रह : श्री हेमचन्द्रसूरि कृत सप्ततत्त्वप्रकरणम् : ११२ : य : कर्मपुद्गलानाच्छेदः स द्रव्यसंवरः। भवहेतुक्रियात्यागः स पुनर्भावसंवरः ।। २. तत्त्वा ६.१ सर्वार्थसिद्धि तत्र संसारनिमित्तक्रियानिवृत्तिर्भावसंवरः। तन्निरोधे तत्पूर्वकर्मपुद्गलादानविच्छेदो द्रव्यसंवरः। ३. द्रव्यसंगह २.३४ चेदणपरिणामो जो कम्म्स्सासवणिरोहणे हेऊ। सो भावसंवरो खलु दव्वासवरोहणे अण्णो ।। ४. पञ्चास्तिकाय २.१४२ अमृतचन्द्रवृत्तिः मोहरागद्वेषपरिणामनिरोधो भावसंवरः। तन्निमित्त : शुभशुभकर्मपरिणामनिरोधो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानां द्रव्यसंवरः ५. वही : जयसेनवृत्तिः . शुभाशुभसंवरसमथ : शुद्धोपयोगो भावसंवरः भावसंवराधारेण नवतरकर्मनिरोधो द्रव्यसंवर इति
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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