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________________ संवर पदार्थ (ढाल : १) १०. ११. इसी तरह पाँच इन्द्रियों की विषयों में स्वच्छन्दता योग आस्रव जानो । इन्द्रियों को विषयों में प्रवृत्त करने का त्याग भी विरति संवर जानो । १२. १३. १४. हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह - इन आस्रवों का समावेश योग आस्रव में होता है। इन पाँचों आस्रवों के त्याग से विरति-संवर होता है। १५. मन-वचन-काय की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति योग आस्रव है। इन तीनों योगों के सर्वथा निरोध से अयोग संवर होता है। वस्त्र, पात्रादि के रखने उठाने में अयतनाचार को भी योग आस्रव जानो । इसी तरह सूची - कुशाग्र का सेवन करना भी योग आस्रव है। इनके प्रत्याख्यान से अयोग संवर नहीं होता; केवल विरति संवर होता है । हिंसादि जो पन्द्रह योग आस्रव कहे हैं वे अशुभ योग रूप हैं। उनके त्याग से विरति संवर होता है । निरवद्य योग उनसे भिन्न हैं। उनकी पहचान करो । मन-वचन-काय के सर्व निरवद्य योगों के निरोध से अयोग संवर होता है। मैंने बीसों ही संवरों का ब्यौरा कहा है, वैसे तो बीसों पाँच में ही समा जाते हैं । १६. कई कहते हैं कि कषाय आस्रव और योग आस्रव के प्रत्याख्यान का उल्लेख सूत्रों में आया है अतः इनका त्याग किए बिना अकषाय संवर और अयोग संवर कैसे होंगे ? अब मैं इसका खुलासा करता हूं। १७. सूत्रों में शरीर प्रत्याख्यान का भी उल्लेख है परन्तु वास्तव में शरीर का त्याग नहीं होता केवल शरीर की ममता का त्याग किया जाता है । शरीर प्रत्याख्यान की तरह ही कषाय और योग प्रत्याख्यान के विषय में समझना चाहिए । ४६३ हिंसा आदि १५ योगों के त्याग से विरति संवर होता है अयोग संवर नहीं । ( गा० १० - १३) सावद्य-निरवद्य योगों के निरोध से अयोग संवर (गा० १४-१५) कषाय आस्रव और योग आस्रव के प्रत्याख्यान का मर्म (गा० १६-१७)
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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