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________________ संवर पदार्थ दोहा संवर पदार्थ का १. छट्ठा पदार्थ 'संवर' कहा गया है। इसके प्रदेश स्थिर होते हैं। यह आस्रव-द्वार का अवरोध करनेवाला है। इससे आत्मप्रदेशों में कर्मों का प्रवेश रुकता है। स्वरूप (दो० १२) आस्रव-द्वार कर्म आने के द्वार हैं। इन द्वारों को बंद करने पर संवर होते हैं । आत्मा को वश में करने से आत्म-निग्रह से संवर होता है। यह उत्तम गुण-रत्न है। संवर की पहचान आवश्यक ३. संवर पदार्थ को पहचाने बिना संवर नहीं होता। सूत्रों पर दृष्टि डाल इस पदार्थ के विषय में कोई शंका मत रहने दो। संवर के मुख्य पाँच ४. संवर के (मुख्य) पाँच भेद हैं और अन्तर-भेद अनेक हैं। अब मैं उनके अर्थ और भेदों को कहता हूँ, विवेकपूर्वक सुनो। भेद ढाल सम्यक्त्व संवर १. जीवादि नव पदार्थों में यथातथ्य श्रद्धा-प्रतीति करना सम्यक्त्व है। उससे युक्त हो विपरीत श्रद्धा का त्याग करना प्रथम “सम्यक्त्व संवर' है।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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