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________________ आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) दोहा १. आस्रव कर्म आने के द्वार हैं, परन्तु मूर्ख आस्रव को कर्म बतलाते हैं। जो कर्म-द्वार और कर्म को एक बतलाते हैं, वे अज्ञानी भ्रम में भूले हुए हैं। आस्रव कर्म-द्वार हैं, कर्म नहीं (दो० १-२) २. कर्म और आस्रव अलग-अलग हैं। उनके स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं। मूर्ख इसका न्याय नहीं जानते हुए कर्म और आस्रव को एक बतलाते हैं। कर्म रूपी है कर्मद्वार नहीं (दो० ३-४) ३. एक ओर तो वे आस्रव को रूपी बतलाते हैं और दूसरी ओर उसे कर्म आने का द्वार कहते हैं। द्वार और द्वार होकर आने वाले को एक बतलाना निरी मूर्खता है। ४. वे तीनों योगों को रूपी कहते हैं और फिर उन्हीं को आस्रवद्वार कहते हैं। जो कर्मास्रव के कारण योग हैं उनको ही वे कर्म कह रहे हैं उनको इतना भी विचार नहीं है। ५. आस्रव के बीस भेद हैं। ये आस्रव-भेद जीव-पर्याय हैं। इनको कर्म आने का कारण कहा है। इसका खुलासा करता हूँ, ध्यान लगा कर सुनना। बीसों आस्रव जीव पर्याय हैं ढाल : २ (पहिला आस्रव मिथ्यात्व है।) तत्त्वों को अयथार्थ प्रतीति-उल्टी श्रद्धा मिथ्यात्व आस्रव है। तत्त्वों की अयथार्थ प्रतीति जीव ही करता है। (अतः मिथ्यात्व आस्रव जीव है)। जो मिथ्यात्व आस्रव को अजीव समझते हैं उनके घट में घोर मिथ्यात्व है।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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